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सोमवार, 5 जून 2023

बालासोर रेल हादसे में जिम्मेदार कौन ?

बालासोर रेल हादसे में जिम्मेदार कौन ?

रेल मंत्री सिस्टम का ढिंढोरा नहीं पीटें, बल्कि सुधार करें
राजनीतिक रोटियां सेकने की बजाय सभी दलों के साथ सरकार मंथन करे
प्रेम आनन्दकर, अजमेर।

बालासोर रेल हादसे में करीब तीन सौ लोगों की जानें चली जाने के बाद जिम्मेदारियों की बात की जा रही है। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव रेल हादसों को शून्य बनाने वाले जिस सिस्टम के इजाद किए जाने के ढोल पीट रहे थे, इसलिए सबसे पहले तो रेल मंत्री से ही सवाल किया जाना चाहिए था। बालासोर में एक साथ तीन रेलों के टकराने से इतनी बड़ी संख्या में लोग दुनिया से विदा हो गए और हजारों लोग जीवन-मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहे हैं। इनमें से कुछ स्वस्थ भी हो जाएंगे, तो उनकी जिंदगी पर किसी अंग के काम नहीं करने या यूं कहें अपाहिज हो जाने से परिवार पर जो विपत्ति पड़ेगी, उसका दंश उन्हें जिंदगी भर झेलना पड़ेगा। जो लोग काल कलवित हो गए हैं, उनके परिवार पर क्या बीत रही होगी, यह तो वे ही जान सकते हैं। उनकी विपत्ति को कोई दूसरा महसूस भी नहीं कर सकता है। अब भले ही मृतकों के परिजन को कितने ही लाखों रूपए की मदद दे दो, कुछ भी नहीं हो सकता। जो इंसान चले गए, उनकी परिवार में भरपाई बिल्कुल भी नहीं की जा सकती है। इतिहास गवाह है, जब लाल बहादुर शास्त्री रेल मंत्री थे, तब एक बार रेल हादसा हो गया था, तो उन्होंने तत्काल अपनी नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए रेल मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। अब ऐसे स्वार्थी युग में नैतिकता की बात करें, तो ऐसा लगता है, हम कौनसी बात कर रहे हैं। रेल मंत्री वैष्णव इस्तीफा दें या नहीं दें, यह अलग विषय हो सकता है, किंतु सबसे बड़ी बात यह देखने वाली है कि आखिर इतने बड़े हादसे के लिए कौन जिम्मेदार हैं। जो भी जिम्मेदार हों, पहले तो उनकी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए और फिर उन पर सख्त से सख्त कार्यवाही होनी ही चाहिए। हम भले ही कितनी तेज गति वाली रेलें चला लें या चला लेने के दावे कर लें, किंतु हमारी सरकार को सबसे पहले रेल हादसों की रोकथाम के लिए जीरो टोलरेंस वाली नीति बनाकर उस पर अमल करना होगा। बालासोर हादसे के शिकार लोग भी तेज गति वाली रेल में ही सफर कर रहे थे। सोच यही थी कि वे जल्द से जल्द अपनी मंजिल पर पहुंच जाएं, किंतु उनकी मंजिल बीच में ही छूट गई। रेल मंत्री से भी पूछा जाना चाहिए कि वे जिस सिस्टम रेल हादसे नहीं होने का बढ़ा-चढ़ा कर दावे कर रहे थे, उसका क्या हुआ। क्या यही है उनका सिस्टम। दिखावा करने और काम करने में अंतर होता है। हम ढिंढोरा तो खूब पीट देते हैं, लेकिन अमल के बाद नतीजा शून्य आता है, तो वही ढिंढोरा खोखला साबित हो जाता है। यही वैष्णव के साथ हुआ है। वैष्णव जी, तेज गति वाली रेलें चलाएं, कोई गुरेज नहीं है, लेकिन इससे पहले सुरक्षित रेल सफर की तरफ ध्यान दीजिए। ऐसी रेलें चलाने से क्या फायदा, जिससे हादसों में इतनी बड़ी संख्या में लोग काल के ग्रास बन जाएं। आप जरा, सोचिए, किसी का पति, किसी का पिता, किसी का बेटा, किसी का भाई चला गया। उनके परिवारों पर क्या बीत रही होगी। परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। हमारे देश में हर घटना-दुर्घटना पर राजनीतिक रोटियां सेकने का रिवाज है। यह रिवाज भी चल पड़ा है। बेशर्म राजनीतिज्ञों को मौतों पर राजनीतिक रोटियां सेकने में जरा भी शर्म नहीं आती। फिलहाल राजनीतिक रोटियां मत सेकिये, बल्कि सरकार के साथ सभी राजनीतिक दल यह विचार कीजिए कि रेल, सड़क और हवाई दुर्घटनाओं की रोकथाम के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं। केंद्र सरकार को भी अपनी राजनीतिक भावना-दुर्भावना अलग रखकर सभी दलों की बैठक बुलाकर उनसे इन उपायों पर मंथन करना चाहिए। बालासोर की घटना पूरे देश के लिए दुखदायी है।

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