Nunwo Rajasthan News Portal

हर ख़बर, साँची ख़बर

Breaking

Post Top Ad 2

Your Ad Spot

बुधवार, 16 जून 2021

राजस्थानी साहित्य मे वीररस

राजस्थानी साहित्य मे वीररस-
 डॉक्टर शक्तिदान कविया 

राजस्थान सूरमौ देस, जिणरौ नाम सुणतां ही निजरां आगे, एक चिळकतो चित्राम मंड जावै, सन्तां, सूरमा'र सतियां री त्रिवेणी रो संगम ओ मरु-मेहराण वीरत रै वखांण ने कीरत रै कमठाण री घण मूंघी खाण है, जिण प्रांत रा जोधार सीस कटियां पछै जूंझार हुआ जठां री अनेक वीरांगनावां आपरी कंचन जैड़ी काया नै हसतां-हसतां अगन री झाळां में झोक दी पर जठां रा सन्तां ''फकीरी जीवत धुखै मसाण'' री अलख जगाई ही, जठै जीवण सूं घणो मोह होतां थकां ई काम पड़ियां मरण-त्योहार मनावता अर सिंधू राग रा रीझाळू वां रणबंकां री मरदाई री मरोड़ नै निरख सूरज ई घड़ी भर रथ ठांभतौ !! 

राजस्थान री धोरा-धरती धारा-तीरथ रो जूनौ धाम है, इण वीर वसुन्धरा री वेकळू रेत तावड़े री भोठ में ऊकळे र कळकळे, पण चांदणी रात में वा इज मखमल ज्यू कंवळी सीतळ पर मुहावणी वणै, इण धरती री तासीर धरती रा सपूतो में लाधै, इणी कारण राजस्थान री वीर परम्परा नै दुनियां आराधै !!

राजस्थान तो भारतीय संस्कृति र सगऴै सुरंगै रूपां रो रतनाकर है, वैदिक सभ्यता अर संस्कृति री साव चिट्टी चिळकती छाप अठारै लोक-जीवण में मिळे, सूरज अर अगनी री पूजा तेजस्विता रौ तौर उजागर करें, अगनी री जोत में इज उजास दीपै अर मंद पड़ियां पछी जोत री ठौड़ ''धूंवै" रा गोट ऊठै, आ इज जोत मानखै री आकूंत ने उद्योत करै, आ बात साव सांची है के जका लोग मरणौ जाणं वे इज लोग जीणौ जाणे है, सूरवीर तो ऐक बार मरै, पण मरनै ई नाम अमर करै जद के कायर ऊमर में अनेक बार जीवतो ई मरे, जीवण पर मौत दोन्नू ऐक ई नदी रा दोय तट है, इणमें हरख-शोक नी करणौ आ इज रजवट है !!

मन री मजबूती, वीरत री विभूती अर संस्कारां री सपूती विनां न तो जंग हुवै, न भगती रो ढंग हुवै अर न रीझ री उमंग हुवै राजस्थानी काव्य में जीवण-दरसण री अनूठी जुगत है, मातृ भूमि री रक्षा रै खातर प्रांणां री आहुति देणी जीवण री सार्थकता है, जिण भांत बीज माटी री गोद में समाय रूंख रे रूप में पाछौ ऊग नै अनेक गुणा वधै, गुलाब रो फूल भट्टी री आंच में होमीजण सू अंतर फुलेल री सासती सोरम वणै, दिवलै री नेहभीनी वाट आप बळ नै ई औरां नै उजास आपै, उणी भांत वीर पुरुष मरणां नूं मंगळ गिण उदंगळ में जाय दंगळ करै !! 

धरती-प्रेम ही राष्ट्रीयता रौ बीज है, मातृ भूमि रौ माण ही देशभक्ति रौ प्राण है इणी खातर राजस्थानी डिंगळ-काव्य में वीरता रौ वरणाव ऐक तरै सू देश-प्रेम रौ दरियाव है, जनमतै टाबर ने मां गुटकी रै साथै ई वीरता रा संस्कार सिखावै अर हालरियै री हिलोर में मरण-वडाई रौ मरम बतावै, महाकवि सूरजमल मीसण रा ऐ बोल अजर-अमर है !!

इळा न देणी आंपणी, 
हालरियै हुलराय !
पूत सिखावै पालणै,
मरण बड़ाई माय !!

वीरता वा आग है, जकी जीवतां नै पाळे अर मुवां पछ बाळे, इण भांत जुद्धवीर, धरमवोर पर दानवीर नांव सूंअवीरां री न्यारी ओळखांण कहीजै, पण मूळ रूप सूवीरता रौ बीज तो ऐक है अर डाळियां न्यारी-न्यारी ! जिणरौ अंतस ऊजळो है, जको पौरुष रौ पूतऴौ है, जिणमें दया रौ भाव है अर दिल दरियाव है, वो इज सांचौ सूरवीर नै रणधीर है !! 

संस्कृत में - ''क्षमा वीरस्य भूषणम्" अर "क्षीणा: जना निष्करुणा भवन्ति'' जैड़ी उक्तियां चावी है, वास्तव में वीर पुरुष ही समाज रौ संकट मेटै अर देश री लाज राखें । मुरझायोङै मन रौ कायर तो बुझियोङै दीवै ज्यूं हुवै, औज बिनां उजास नहीं पर हेत विनां हुलास नहीं, सो रंग री रळियां अर रीझ री झड़ियां दो ही काम दिलेरी रा है, ''बीरभोग्या वसुंधरा'' रै सूत्र ने डिंगळ कवियां घणैं रूपाऴै ढंग सू उजागर कियौ है, सूरजमल जी मीसण रै सबदां में घरती री धरम नै मरदाई रौ मरम पढण जोग है !!

खाटो कुळ री खोवणा, 
नेपै , घर - घर नींद ! 
रसा कंवारी रावतां , 
वीर तिको ही वींद !!

जिण तरै आग में तपियोड़े कंचन री कीमत वधै, उणी भांत विखै में पळियोड़ा बाळक खरा नीवङै, जठै सूरमां संग्राम री आग में अर सती चिता री आग में जऴै, वां घरां में इज रजवट पऴै ! राजस्थान में रजवट री परिभाषा घणी रूपाळी है प्रांण सूं मूंगो प्रण पर जान सूप्यारी आन है, उठै इज रजवट री शान है, जथा !! 

सुधौ रजवट परखणौ, 
ऐ रजवट एहनांण !
प्राण जठै रजवट नहीं, 
रजवट जठै न प्राण !!
संग बळ जावै नारियां, 
नर मर जावै कट्ट !
घर बाळक सूना रमै, 
वे भोग रजवट्ट !!

राजस्थान में शक्ति पूजा री प्राचीन परम्परा रही है अर वीर-काव्य रा रचैता चारण कवियां रै घरां में देवी रूप चारणी महा-शक्तियां रा अवतार प्रसिद्ध है ! दुष्टां रौ संघार नै भक्तां रो उद्धार करण वाळी बीस भुजाळी भगवती रा उपासक राजस्थानी रणबंका मर्यादा री औट में जीत रा डंका बजावता, इणी कारण वांरै तर-तर वधत तौर माथै गौर करतां थकां वां जीवण रौ अमर संदेश दियौ है, जीवण घणौ अमोल है, पण आत्म-सम्मान रै साथै जीवणौ है, जे अड़ी घड़ी आय जावै के या तो माण रैसी या प्राण, तौ मर जावणौ पण घास कदेई नी खावणौ जीव रहै जठा तक मिनखपणै री नींव रहै, औ दूहौ घणौ रूपाऴौ है !!

मांण रखे मरजे मती, 
मरे , न मूके मांण ! 
जब लग सास सरीर में, 
तब लग ऊंची ताण !!

राजस्थानी जीवण-दरसण में वीरता अर मर्यादा दोनूं भेळा गूंथीजियोड़ा है, चाहे वीररस हो चाहै सिणगार रस, म्रजादा बायरी बात लाज बायरी गिणीजै, ''वेलि क्रिसन रुकमणी री'' रै सिंणगार में सब सूं मोटी आइज विशेषता है, वीररस रै वरणाव में पूज्य रै प्रति आदर भाव रौ निभाव मुवां उपरांयत ई कायम रेवै, रण खेत में हाथी रै हौदै तो मोटै भाई री ल्हास अर नीचे पगां में छोटे भाई री मृत देह पड़ी देख ऐक वीरांगना री मोद भरी उक्ति उल्लेख जोग है !!

देराणी भाभी कहै, 
हाथी ढाहण हेठ !
पांवा देवर पोढियो, 
जिणरै होदै जेठ !!

राजस्थानी वीरकाव्य री ऐक सबळी विशेषता आ है के अठा री वीरांगना इज वीरता री खांण है, बेल जैड़ा फळ नै रूखां जैड़ा छौडा ह्वै, महाकवि मीसण री ''वीरसतसई'' ती ऐक तरै सूं नारी महिमा री मणिमाळा है ! राजस्थानी वीरकाव्य री आ मौलिक विशेषता जस पर अंजसजोग है ! वीर नारी रा मे बोल घणा अण मोल है !! 

नह पड़ोस कायर नरां, 
हेली वास सुहाय ! 
बलिहारी उरण देसङै, 
माथा मोल बिकाय !! 
देव ग्रीझण दुड़बड़ी, 
संवळी चंपै सीस !
पंख झपट्टा पिव सुवै, 
हूँ ' बळिहार थईस !! 
सहणी सब री हूं सखी, 
दो उर उलटी दाह ! 
दूध लजाणो पूत सम, 
बलय लजाणो नाह !!

राजस्थानी जीवण में वीरता तो रगत रै साथै रळियोड़ी चीज है, इण सारू उण माथै धीज अर पतीज है ! जकै मरण नै मंगळ गिणे, वे क्यों तो टीपणा पूछै अर क्यों सुगन देखें ! विजयश्री या वीर गति, दोनूं पागड़ां जीत है, क्यू के जीवता जस अर मुवां सुरग री रीत है ! जकै मांचै री मौत मरे, वे जमारो हारै अर नरकों में वास करें, जथा !!

अठै सुजस प्रभुता उठे, 
अवसर मरिया आय ! 
मरणो घर रै मांझिया, 
जम नरका ले जाय !! 
सूर न पूछै टीपणो, 
सुकन न देख सूर ! 
मरणा नू मंगळ गिणै, 
समर चढै मुख नूर !! 
के सूरा धरकज्ज है, 
के सूरा परकज्ज ! 
सुरपुर दोहूं संचरै, 
रूकां ह्वै रजरज्ज !!

जूंझणौ चाहै तो धरती र कारण, के चाहे परमारथ रै कारण दोनूं उद्देश्य घणा पवित्र है ! सपूती रै मंडाण खातर तरवारा री तीखी कोर सूं झड़णिंयों मिनख समाज रै काळजे री कोर बण जावै, सांचे सूरवीर खातर जंग रौ मैदान तो खेल रे मैदान ज्यू मनोरंजन रौ साधन है ! मदारी रै खेल या दूजा मजमां सूं रणबंका रौ मन रीझै नहीं, ''दमगळ विन अपचौ'' हुय जावै, वे तो ऐड़ो तमासी चावै !!

और तमासा कायरां, 
बेखै नह धव बांण ! 
घाव हबक्कै भड़ बकै, 
जके तमासौ जाण !

इण भांत रा जंगी जोधारां री दळ घण जोम सू रणभोम में आंमी-सांमी आय ऊभै, उण वखत फौज-घटा री छटा जोवण जोग होवे, घोड़ां सूं ऊतरतां पाण पूरै आपांण सूं भाला जमीं में रोप! वां में लगाम अटकाय नै दोनू दळ आपस में अमल री मनवारां करें, धरम-जुद्ध री ऐड़ी मिसाल कठे मिळे, जठै शत्रु दऴ सिगरत पांवणां ज्यूं गऴै मिळे, अर पे'ली वार करण री मनवार करै ! ''वीरसतसई'' रा ऐ दूहा इण बात री साख भरै !! 

मिळतां ऊतरिया मरद, 
साकुर बाधा सेल !
मिजमांनां जिम मंडिया, 
खोबां-बाजी खेल !!
संपेखे वाल्हा सगा, 
मिळ गळ बत्थां मार !
पहली वाहण पाहुणां,
मंडीजै मनुहार।।



आखातीज रै अखी तिंवार माथै गांवां में जिण भांत अमल री मनवार हुवे अर पछै मोटियार कबड्डी रमै, उणी भांत सूरमा रण आंगण में डंडियां री गेर ज्यूं रीठ बजाय खगधारां वाहै अर खमै, जुध्द री झाकझीक में सूरमै रा दोय हाथ दोय हजार हाथां री करामात दरसावै ! आधे मांचै में मावणियौ भरतार वीरांगना रै निजरां में ई नी मावै, वीर पुरुष री आइज वधताई है, के ऐश में अर तैश में वो आपो बदळ दै, वीर पति रै हेज अर गुमेज सूं गरकाव अंतस रे आखरां में मोतियां री आब है !!

हेली की अचरज कहू, 
कंत परा बळिहार !
घर में देखू दोय कर, 
रण में दोय हजार !!
की हेली अचरज कहू, 
कंत धणी रै काज !
मंच अधूरै मावतो,
आँख न मावै आज !!

राजस्थानी बीरकाव्य में चंवरी रै तोरण सूं रण-तोरण वाल्हौ लखावै, अर वनड़ी रै रूप में सेना रूपी सुदरी-संजोग हियो हुलसावै ! पल्ला बंधियो बींद घर में पैसण लागौ, इतरै ई वाहरू ढोल वागौ, परणी रो पल्लो छोड धरणी री आबरू खातर पमंग री पीठ असवार हुयौ, तन री प्रीत नै त्याग वतन री प्रीत पाळी, इण भांत वडकां री साख उजाळी ! इण प्रांत रै इतिहास में अनेक उदाहरणां सूं आ छवि उजागर हुवे, जथा !!

नेहनव री जकीबात चितना धरी, 
प्रेम गवरी तणौ नांह पायो !
राजकंवरी जका चढी-चंवरी रही, 
आप भंवरी तणी पीठ आयौ !!
दलाहर जोधपुर चाढ़ जूटो दळा, वळोवळ खळां खग रीठ वागो !
जवांनी आखियो तिकोनह जाणियौ, लाज रै कयै असमांन लागौ !!

बंब सुणायौ बींव नूं,
पैसंतां घर आय !
चंचळ साम्है चालियो, 
अंचळ बंध छुड़ाय !!

इण तौर वो अळवळियो असवार खार खायोड़ो थकौ शत्रु दळ माथै इण भांत काटकतो ज्यूं तारो तूटो या इन्द्र रो बज्र छूटौ ह्वै, हनुमान लंका माथै कूदियो हौवै या शंकर री जटा सूं छूट वीरभद्र जूटौ होवै, नागदळ माथै खगराज गरुड़ राटकियो हुवै या भूखो वाघ लरड़ियां माथै काटकियो हो ! सोर माथै अंगारौ मेलियौ हौवं या रामचंद्रजी लंका माथै बांण ठेलियौ होवै ! ऐड़ी गत सू जुद्ध री झाकझीक माचती ! जोधारां रौ जूझणौ भालां रा भचीड़, खागां री खाणकार, तोपां रा धमाका, घोड़ां रा पौड़, बगतर री कड़ियां रौ बड़कणो, कटियै कंधां रो लड़कणौ, रजी सूं गिगन गूगऴौ होणौ अर दिन में अंधार घोर होणौ, राजस्थानी वीरकाव्यां री खास विशेषता है !! 

राजस्थान री रणभीनी रेत रगत-खाळा सूं राती रही अर सूरापै रै तप-तेज ताती रही, इण धरती री धूंस रौ धूंसौ बाजतो रयो अर ओजपणे रो अम्बर अग्राजतो रयो ! इण माथै गुमर सूं गाज करण बाळां रो आ धरती लोही पी जावे, सायत इणी कारण बादळ अठै गाज करता ई सरमावै शंकरदानजी सामौर कृत ओ दूहौ कितरौ फूठरो है !!

पाणी रो कांई पियै, 
रगत पियोड़ी रज्ज !
संकै मन में आ समझ,
घण नह बरसै गज्ज !!

रणबंको राजस्थान वीरता पर वीर-रस दोनां रौ ई गढ रयो है ! अठै डिंगळ रौ डमरू गूंजतौ ने सूरमा रौ दळ जूंझतौ ! ऐड़ा अबेढा जंगां री धमचक मचतौ, ज्यांनै देख साक्षात काळका ई भयभीत होवण लागती ! हबोथब जंग ने देख काळका दंग होय डरण लागी, तो कवि री वांणी यू कहण लागी !!

काळी नाहक कीं डरै, 
खेती लाभ म खोय !
धरती रा जेथी धणी, 
हूंकळ तेथी होय !!

जंगी जोधार केसरिया बांना धार'नै हर-हर महादेव रो सिंहनाद करता थका जुद्ध में घोड़ा झोंकता, उण पुळ शंकर मुंडमाळा सारूं मस्तकां री तऴास में फिरता, मेड़तै री राड़ में महेसदास रो शीश कट-कट नै चिटकां हुयग्यौ, इण कारण महेस जी री माळा में तो पोईजियो, पण पारबती आपरै चंद्रहार में लाल नगां ज्यूं पोय दियो डिंगळ गीत रा ऐ बोल घणा अणमोल है !!

चुग रणखेत मेड़तै चौसर, 
लाल नगा ज्यू पोय लियो !
परपिरजा सिणगार न वणायो, 
कंठ गिरजा चंद्रहार कियो !!

इणी भांत दुरजणसाल नै जूंझतौ देख महादेव उणरै मुडं खातर साथै-साथै दौड़तौ रयो, पण अजूणीनाथ थाको, सूरमौ नीं थाको ! सेवट मायौ तरवारां री तीखी कोरां सूं रज-रज हुय रज में मिळग्यो, जिणने देख त्रिपुरार ताळी दे हंसण लागो । डिंगळ-गीत री ऐ झड़ां उण जुध्द री साखीधर है !!

बसियो जाय हंस बैकुठां, 
पूगो दसदसियो अणपार ! 
रज-रज सीस हो रणरसियो, 
ताळी दे हंसियो त्रिपुरार !!


राजस्थानी वीरकाव्य री ऐक विलक्षणता आ है, के उणमें सूरापौ अर सिणगार दोनूं ऐक साथै मिळे, इणरो कारण है के जठै मरण-परब मनाईजे, ''हथळे जुड़ियो जको, हमै न छूटै हाथ'' रौ अडिग विश्वास होवे, वीरगति या विजयश्री दोनूं कीरत रा कमठाण ह्वै, जठे जंग अर रागरंग में ऐक सरीखी मस्ती होवे, वे जूझार काळ सूं कबड्डी रमै अर अपसरावां वरमाळ लियां ऊभी वाट उडीकै, ऐड़ी बौर परम्परा रा नकसा वीर कवियां री कलम सूं ई कोरीजै अर बीज रूंखड़ो वणियां पछी उणरा पुसपां री परमळ दिगदिगंत तांई जाय पूगै ! जुद्ध रै वरणाव में सिणगारू भाव रे वीरकाव्य रो दरियाव डिंगळ- साहित्य में हिलोरां लेवै, जठे शत्रु-सेना सुन्दर बनड़ी रे रूप में वीर नै वरण खातर आवे, जदेई घोड़ां रे पाखर रूपी घूघरा घमकाती भालां रूपी नथ भळकाती, कवच रूपी कांचळी ने झिलम रूपी टीको टमकाती हाथियां रूपी काजळ सारती पर धजावां रौ घूंघट धारती थकी नवेली दुलहण ज्यू लखावै ! ''झमाळ'' रा अाखर मोतियां री माळ है !! 

घूघर पाखर घमकती,
सिंधुर काजळ सार ! 
विचित्र घड़ा आई वरण, 
धज लज घूंघट धार !
धज लज घूंघट धार,
क भालां नथ भऴक !
जङ कांचू धङ जरद,
झिलम टीका झऴक !
घण घूंमती घाय,
मीर धङ मोङती !
हाडां लाडां हूंत,
छेहङा जोङती !!

इण भाव सूरण-रसिया, कसिया केकाणां चढ झपटा करता, नै री जुध्द री आग में आहुति देय असमेध जिग रा पाउंडा भरता, ओ इज कारण है के राजस्थानी बीरकाव्य में भांत-भांत रा रूपकां सू सेना अर संग्राम रा घणा चोखा- नोखा चित्राम मिऴै, जकै दुनियां में भेळा ई नीं मिळे ! शस्त्र, अस्त्र, हाथी, घोड़ा, ऊंट इत्याद रै टोळां अर फौज रै हबोऴां रो वरणाव डिंगळ-काव्य में दीपै, जिणसू जुद्ध रौ मांझी सज-धज नै जंग जीपै !! 

राजस्थानी साहित्य में वीररस रो जीवतो- जागती अर निजरां दीठौ वरणाव होणे सूं उणरी छटा निराळीहै, संस्कृत काव्यशास्त्र री निजर सूं तौ वीररस फगत हिय में उछाह तांई कहीजे, पण राजस्थानी साहित्य में तो सूरमां रो जोम रणभोम में ई परखीजै, इण कारण डिगळ वीरकाव्यां में वीर, रौद्र अर भयानक रस ऐक ही रूंख रा डाळा है, जकै मरण-परब री मिमझर सूं मतवाळा है ! औ इज कारण है के दुसमण री छाती वेध पार हुई कटारी माथै लागोड़ो लोही-मांस ऐड़ो लखावै ज्यूं मंजरी अर पुसपां सूं लदियोड़ी डाळी होवे माल्हड़ वरसड़ा कृत गीत री ऐ झड़ां पढणजोग है, ज्यां में वीरता रूपी वसंत रौ भाव दरसायौ है !!


वीरत वसंत कळोधर वीरम, 
असुरां उर फूटतौ अजंस !
लोहाळी तरुवर वर लग्गा, 
मंजर पुहप तरणा वस मंस !!

इणी भांत जुद्ध में बरछी शत्र री पीठ फाड़ आर-पार निकळगी जिण माथै ठेरियोड़ी रगत री राती बूदां इण भांत लखावै, ज्यू कोई नवादी बीनणी रौ मेंहदी राच्योङौ हाथ निजरां आवे, डिंगळ गीत रौ प्रौ दुहाऴौ वांचणजोग है !!

डगे पग लगे जाण भुजंग डाढ़ियो, 
सुरंग रंग चाढियो श्रोणगारी !
वार बरछी कही खळां विप वाढियो, 
(ज्यूं) बीनणी काढियो हाथ बारी !!

हिंगळ वीरकाव्य रो औ पक्ष घणो अनूठो अर अदभुत है, रण खेत में ऐक कानी साकणी, डाकणी, भूत-प्रेत, पळचर, पंखेरू इत्याद आपरी भूख मिटावै, तो दूजी कानी अप्सरावां जांझर री झंणकार करती सूरमां ने वरण करती निजरां आवै, जोधारां रे पगां में अळूझीयोड़ी आंतां नै गळे में पैरियोड़ी बरमाऴा घणी अनोखी सोहै, जिणरा चित्रांम कवेसरां री कलम सूं मन मोहै ! जथा !!

पळच्चर साकणि डाकणि प्रेत,
खुधावंत भक्ख लियो रणखेत !
रमज्झम जांझर घूधर रोळ, 
झलै वर सूर वरै रमझोळ !!

डिगळ वीरकाव्य में सूरवीर रौ बरणाव प्रतीक पर अन्योक्ति अलंकार रै रूप में घणै रूपाळे ढंग सूं हुऔ है ! काऴौ नाग, नाहर, धवळ, डाढाऴौ वाराह इत्याद रूपां में वीर सभाव रौ नामी बरणाव हुऔ है ! गिणती सूं गुण ने सिरै मानतां थका सपूती री बन्दना की है ! जीत घणां सूं नहीं, मिनखणै रै गुणां सूं हुवै है, जथा !! 

गंधारी सुत सौ जण्या, 
कुंती पांच जणेह !
वां पांचां सौ गंजिया, 
की है घणे जरणेह !!

धरम अर सत रै आधार माथै सपूती री वाट बहतां जुद्ध रौ जोग सराहण जोग कहीजै, इण खातर राजस्थानी वीरकाव्य में राजनीति सूं नीति, तन सूं वतन अर जान सू आन री इधकाई गिणीजै ! सूरमा बिना मौत मरे नहीं अर कायर अमर होवै नहीं, पछै माण-हीण जिंदगी क्यूं अंगेजै ? काया काची है अर सोभा साची है । इण तंत री बात नै लखियां पछै जीवण रौ अंत ही वसंत बण जावै, अर ऐ जूनां दूहा घणा दाय आवै !! 

मरै न सूरा मौत बिन, 
कायर अमर न कोय !
काची काया कारण , 
मत भूलो मत खोय !!
अण विसवासी जीवड़ा, 
कायर क्यूं दौङेह !
मरसी कोठी लोह री, 
(क) ऊबरसी चौङैह !!

अन्त में, सार रूप में आ इज बात लखावै के ''काची कुभ मिनख री काया, फिरतां घिरतां फूटै'' या यूं भी कहि जावै ''जावसी देह सोभा नहीं जावसी, वास रह जावसी फूल वाळी'' जैड़ी उक्तियां साव साची है अर हियै में जचै है, इणी खातर संसार में नाम अमर करण सारूं सती जऴै, सूरमौ जूंझै, दातार रीझै अर कवि-विद्वान ग्रंथ रचै है । कीरत अर वीरत रौ औ मूंघौ मेळ घंणो मोहणौ अर अणमोल है, जिणरी साख में कविराजा बांकीदासजी रा ऐ अमर बोल है !!

सती बऴै जूंझै सुभट, 
करै ग्रंथ कविराज !
दाता माया ऊधमै, 
नांव उवारण काज !!

राजेन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा सीकर !!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Post Top Ad 3

https://1.bp.blogspot.com/-LCni8nj6Pf0/YTK0cUKNSsI/AAAAAAAAA0U/wVPSwz7KZ7oI9WshKzLewokpker4jMqRQCLcBGAsYHQ/s0/IMG-20210903-WA0020.jpg