Ganesh chaturthi चतड़ा चौथ भादूड़ो: राजस्थान की अनमोल धरोहर
नीलू शेखावत
रिसर्च स्कॉलर, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर।
राजस्थान की संस्कृति की पहचान उसकी परंपराओं, त्योहारों और लोक आस्थाओं में निहित है। यहाँ की हर रस्म और पर्व में न सिर्फ धार्मिकता बल्कि जीवन के प्रति गहरे श्रद्धा भाव झलकते हैं। ऐसी ही एक अनमोल परंपरा है "चतड़ा चौथ भादूड़ो", जिसे Ganesh chaturthi गणेश चतुर्थी के रूप में राजस्थान के ग्रामीण अंचलों में विशेष रूप से मनाया जाता है। यह पर्व सिर्फ धार्मिक महत्व तक सीमित नहीं है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक जुड़ाव की भावना को भी मजबूती प्रदान करता है।
इस ब्लॉग में हम इस त्योहार की महत्ता, इसके इतिहास, इसके साथ जुड़ी प्रथाओं और आधुनिक समय में इसके अस्तित्व पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
रणतभँवर के राजवी और गणेश जी से जुड़ी आस्था
राजस्थान के हर व्यक्ति के दिल में गणेश जी के प्रति गहरी आस्था है, और यह आस्था विशेष रूप से रणतभँवर से जुड़ी हुई है। चाहे राजस्थान में हो या विदेशों में, यहाँ के लोग किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत रणतभँवर के राजा गणेश जी का आशीर्वाद लेकर ही करते हैं। यहाँ की मान्यता है कि गणेश जी का निवास रणतभँवर में है, और हर शुभ कार्य का निमंत्रण सबसे पहले उन्हें ही भेजा जाता है।
लोग अपने घरों में पूजा करने से पहले एक चिट्ठी गणेश जी को लिखते हैं, और भारतीय डाक सेवा के माध्यम से इसे रणतभँवर भेजते हैं। यह परंपरा आज भी जीवित है, और लोगों का विश्वास है कि गणेश जी उनकी चिट्ठी अवश्य पढ़ते हैं और उनकी प्रार्थनाओं का उत्तर देते हैं। भले ही धन या समय की कमी हो, लेकिन लोग गणेश जी को निमंत्रण भेजने की इस परंपरा को नहीं छोड़ते।
भारतीय डाक और चिट्ठी भेजने की परंपरा
डिजिटल युग में जहाँ इंटरनेट और मोबाइल फोन ने संचार के सभी पुराने माध्यमों को पीछे छोड़ दिया है, वहीं राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी चिट्ठी भेजने की परंपरा जीवित है। लोग अपने मन की बात गणेश जी तक पहुँचाने के लिए डाक सेवा का सहारा लेते हैं। डाकिये भी इस काम को पूरी श्रद्धा और समर्पण से करते हैं। वे चिट्ठियों को रणतभँवर तक पहुँचाने में गर्व महसूस करते हैं। यह एक अनूठी परंपरा है जो राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखती है।
लेकिन आज के डिजिटल युग में जब सबकुछ ऑनलाइन हो गया है, तो यह सवाल उठता है कि क्या यह परंपरा भविष्य में जीवित रह पाएगी? शायद एक दिन ऐसा आए जब गणेश जी को भी स्मार्टफोन थमा दिया जाए, और चिट्ठियों की जगह ईमेल और एसएमएस का इस्तेमाल होने लगे। लेकिन यह सब एक मजाक की तरह ही लगता है, क्योंकि गणेश जी हर जगह हैं, और उनकी पूजा हर रूप में की जा सकती है।
गणपति की सर्वव्यापकता और उनकी महिमा
गणेश जी को अलग-अलग नामों और रूपों में पूजा जाता है, लेकिन उनका महत्व हर जगह एक जैसा ही है। वे सिर्फ एक देवता नहीं हैं, बल्कि वे बुद्धि, समृद्धि, और सफलता के प्रतीक हैं। शास्त्रों में गणपति को सर्वव्यापी माना गया है, जो हर स्थान और हर काल में उपस्थित रहते हैं।
राजस्थान के लोग गणपति को अपने जीवन के हर महत्वपूर्ण क्षण में शामिल करते हैं। चाहे पूजा का कोई भी कोना हो, गणपति की मूर्ति सबसे पहले स्थापित की जाती है। घर के मुख्य द्वार पर, पूजा के ग्रंथ के पहले पृष्ठ पर, और किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत में गणपति की उपस्थिति सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है।
गणपति की पूजा से जुड़ी इस आस्था का असर राजस्थान के लोक जीवन, कथा, गाथा और गीतों में भी दिखाई देता है। गणपति सिर्फ पूजा का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि वे राजस्थान के लोगों के जीवन का अभिन्न अंग बन चुके हैं।
Ganesh chaturthi चतड़ा चौथ: राजस्थान की विशेष परंपरा
राजस्थान में गणेश चतुर्थी Ganesh chaturthi को "चतड़ा चौथ" के नाम से जाना जाता है। यह पर्व विशेष रूप से बच्चों के लिए होता है, जिन्हें इस दिन का बेसब्री से इंतजार रहता है। पुराने समय में, इस दिन को "ऑफिशियल बाल दिवस" के रूप में माना जाता था। बच्चों को इस दिन के लिए नए कपड़े पहनाए जाते थे, और उनके लिए विशेष मिठाइयाँ बनाई जाती थीं। घी, गुड़ और बेसन से बनी मिठाइयाँ इस दिन की खास पहचान होती थीं।
चतड़ा चौथ के दिन गाँव भर के बच्चे इकट्ठे होकर डांडिये लेकर घर-घर जाते थे। उनके हाथों में झोली होती थी, और वे सभी एक स्वर में गाते थे:
चतड़ा चौथ भादूड़ो, दे दे माई लाडूड़ो।
चतड़ा चौथ भादूड़ो,
दे दे माई लाडूड़ो...!
आधौ लाडू भावै कौनी,
सापतौ पाँती आवै कौनी..!!
सुण सुण ऐ गणपत की माँय,
थारो गणपत पढ़बा जाय..!
पढ़बा की पढ़ाई दै,
छोरा नै मिठाई दै..!!
आळो ढूंढ दिवाळो ढूंढ,
बड़ी बहु की पैई ढूंढ..!
ढूंढ-ढूँढा कर बारै आ,
जोशीजी कै तिलक लगा..!!
लाडूड़ा मै पान सुपारी,
जोशीजी रै हुई दिवाळी..!
जौशणजी नै तिलियाँ दै
छोरा नै गुडधानी दै,
ऊपर ठंडो पाणी दै..!!
एक विद्या खोटी,
दूजी पकड़ी चोटी..!
चोटी बोलै धम धम,
विद्या आवै झम झम..!!
लोग भी बच्चों के इस गीत से प्रसन्न होकर उन्हें गुड़ और धाणी देते थे। बच्चे इसे आपस में बाँटकर खाते थे और इस दिन का भरपूर आनंद लेते थे। यह परंपरा बच्चों के लिए सिर्फ मस्ती का मौका नहीं थी, बल्कि यह उन्हें सामाजिकता और सामूहिकता की भावना से भी जोड़ती थी।
प्राचीन परंपराओं का लुप्त होना
लेकिन समय के साथ हमारी यह परंपरा धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है। हमारी पीढ़ी इन परंपराओं का हिस्सा नहीं बन पाई क्योंकि हमने आधुनिकता की ओर बढ़ने के साथ-साथ इन परंपराओं को पीछे छोड़ दिया। अब राजस्थान में यह परंपरा सिर्फ कुछ गाँवों में ही देखने को मिलती है।
आधुनिकता की इस दौड़ में हमने अपनी संस्कृति, अपने उत्सव, अपनी भाषा और अपनी पहचान को कहीं न कहीं खो दिया है। आज के बच्चों के पास उन रंग-बिरंगे डांडियों की जगह मोबाइल और वीडियो गेम्स ने ले ली है। वे अब चतड़ा चौथ के गीत नहीं गाते, बल्कि आधुनिक जीवन की दौड़ में उलझे हुए हैं।
राजस्थानी भाषा और संस्कृति की महत्ता
राजस्थान की संस्कृति और भाषा ने हमेशा से ही यहाँ के लोगों को गर्व की अनुभूति कराई है। राजस्थानी डिंगल में गणेश वंदना सुनने पर रोम-रोम पुलकित हो उठता है। लेकिन आज के समय में इस भाषा और संस्कृति को बचाए रखने की चुनौती सामने आ रही है।
राजस्थानी भाषा और संस्कृति की महत्ता को समझना और इसे बचाए रखना हम सभी की जिम्मेदारी है। इस भाषा में छिपी लोक कथाएँ, गीत और गाथाएँ हमारे इतिहास और परंपराओं का अनमोल खजाना हैं, जिन्हें हमें संजोए रखना चाहिए।
चतड़ा चौथ भादूड़ो सिर्फ एक पर्व नहीं है, बल्कि यह राजस्थान की संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक है। यह त्योहार हमें हमारे पुराने दिनों की याद दिलाता है, जब हम अपने गांवों में रहकर इन परंपराओं का हिस्सा बनते थे।
आज भले ही समय बदल गया है, लेकिन हमें इन परंपराओं को जीवित रखना चाहिए। हमें अपने बच्चों को इन परंपराओं के बारे में बताना चाहिए, ताकि वे भी हमारी सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा बन सकें। चतड़ा चौथ का यह पर्व हमें यह सिखाता है कि चाहे कितनी भी आधुनिकता आ जाए, हमारी जड़ें हमेशा हमारी संस्कृति और परंपराओं में ही निहित रहेंगी।
चतड़ा चौथ की सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ!
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