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रविवार, 11 अगस्त 2024

नारायण सिंह राठौड़ 'पीथल' का राजस्थानी RAHASTHANI SAHITYA साहित्यिक संसार


RAJASTHANI SAHITYAनारायण सिंह राठौड़ 'पीथल' का राजस्थानी साहित्यिक संसार



जीवन परिचय


नारायणसिंह राठौड़ ’’पीथल’’ पुत्र स्व. श्री अगरसिंहजी राठौड़ एवं माता स्व. श्रीमती चतरकंवर जी

(अ)  पताः जयपुर 72.ए मानसिंहपुरा किसान मार्ग, टोंक रोड़, जयपुर-302 018 (राजस्थान)

(आ) स्थायी पता- 2-ए नया बास बालसमन्द, जोधपुर-342026

(इ)  दूरभाष नं. एवं ई-मेल (यदि काई हो) मोबाईल नं.-98292-37631
(ई)  मउंपस ंकतमेे.      देपदही546/हउंपसण्बवउ

(अ)  जन्म तिथि (ईस्वी सन् में) एक अगस्त, 1947
(आ)  वर्तमान में आयुः करीब 77 वर्ष

प्रारम्भ में सन् 1964-65 से 1971 तक पत्रकारिता। 36 वर्ष तक राजकीय सेवा ।
सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग में रहते हुए लगभग 16 वर्ष तक मुख्यमंत्री एवं राज्यपाल जन सम्पर्क प्रकोष्ठ में सेवाएं।  1 अगस्त, 2007 को उपनिदेशक पद से सेवा निवृत्त।

वर्तमान व्यवसाय -      स्वतंत्र लेखन/पत्रकारिता/चेयरपर्सन, पं. उगमराज खिलाड़ी, लोक कला प्रशिक्षण एवं षोध संस्थान, मेड़तारोड, नागौर (राजस्थान)  

सलाहकार (जन सम्पर्क/मीडिया) मुख्यमंत्री जन सम्पर्क प्रकोष्ठ, (वर्ष 2009 से 2013 तक)

8. (अ) शैक्षणिक योग्यता- जे.डी.सी. वाणिज्य स्नातकोत्तर और
पी.जी. डिप्लोमा पत्रकारिता एवं जनसंचार

(आ) विशेष योग्यता- राजस्थानी लोकनाट्यों पर ’’ख्याल रचनावली’’ का लेखन एवं  राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सहयोग से प्रकाशन। इस कृति पर राज्य सरकार द्वारा नकद 2500 रुपये का पुरस्कार एवं प्रशस्ति पत्र।

(इ)  कार्य तथा योगदान- राजस्थानी लोकनाट्य ख्याल पर राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर
एवं पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, उदयपुर द्वारा तिलवाड़ा मेला में आयोजित कुचामणी ख्याल समारोह में सहयोग।
राजस्थानी लोकनाट्य दलों एवं कलाकारों से जीवंत सम्पर्क एवं सम्बन्ध तथा उनको अवसर एवं प्रोत्साहन के लिये लगातार मार्गदर्शन।

राजस्थानी भाषा, RAJASTHANI SAHITYAसाहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर की अधिशासी एवं कार्यकारिणी समिति के सदस्य एवं उपाध्यक्ष के रूप में लोक विधाओं की जीवंतता के लिये प्रयास।

राजस्थानी लोकनाट्य विधा एवं लोक कलाकारों पर शोध परक फीचर एवं साक्षात्कारों का लेखन एवं प्रकाशन।

9. साहित्यिक अवदान सोसनिया आभो (राजस्थानी कविता संग्रह)- राजस्थानी भाषा,  साहित्य एवं                       संस्कृति अकादमी, बीकानेर के सहयोग से प्रकाशन।
                     ख्याल रसकपूर, महाराणा प्रताप और ख्याल आजादी री अलख का लेखन
भारतीय संस्कृति पर  संस्कृति प्रवाह संकलन का सम्पादन वर्ष 1968-69)

10. प्राप्त सम्मान/ पुरस्कार 1.’’ख्याल रचनावली’’ कृति पर राज्य सरकार से 2500 रुपये का         पुरस्कार एवं प्रशस्ति पत्र सहित अनेक सरकारी-गैर सरकारी सम्मान/    प्रशस्ति पत्र एवं नकद पुरस्कार।
2.अनुराग कला केन्द्र, बीकानेर द्वारा ख्याल रचनावली की एक रचना    ’’ख्याल आखर ज्ञान’’ के रम्मत-रूपान्तरण ’’आई-आई रै आंगणिये‘‘ के    मंचन के अवसर पर जिला साक्षरता समिति, बीकानेर की ओर से  प्रशंसा-पत्र।
3. राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर द्वारा    राजस्थानी भाषा-सेवा सम्मान- 2005-2006.
4. ‘लोकरत्न सम्मान‘-4 जनवरी, 2014 युवा जन सेवा संघ, जयपुर
5. श्री द्वारका सेवा निधि, जयपुर-वैद्य पं.ब्रजमोहन जोशी-मन्नीदेवी जोशी        राजस्थानी साहित्य पुरस्कार-वर्ष-2016 ई.
6.पब्लिक रिलेशन्स सोसाइटी इंडिया के जयपुर चेप्टर के रजत जयंती        समारोह, 23 अप्रैल, 2017 को जनसंपर्क उत्कृष्टता सम्मान।
7. मेहरानगढ़ म्युजियम ट्रस्ट एवं इंटैक जोधपुर चैप्टर द्वारा 15-17 मई 2017 तक जोधपुर मे मारवाड़ लोक नाट्य महोत्सव में प्राचीन एवं पारंपरिक कुचामणी ख्याल की उत्कृष्ट प्रस्तुति एवं उल्लेखनीय प्रदर्शन के लिये इंटैक राजस्थान चैप्टर संयोजक, पूर्व महाराजा श्री गजसिंहजी का प्रमाण पत्र।
8. रोटरी क्लब, बीकानेर के राज्यस्तरीय राजस्थानी भाषा-साहित्य पुरस्कार के लिये लगातार दो वर्षों से निर्णायक।
9. पं.उगमराज लोक कला प्रशिक्षण एवं शोध संस्थान मेड़ता रोड की तरफ से लोक नाट्य प्रस्तुति रो संयोजन। क्लब की ओर से प्रशस्ति पत्र प्रदान।
                       10. राजस्थान चैंबर ऑफ कॉमर्स का  कलाजे सम्मान।
                       11. राजपूत साहित्य अकादमी द्वारा पृथ्वीराज राठौड़ सम्मान।

11. देखो आपणौ राजस्थान-    जयपुर दूरदर्शन से प्रसारित इस धारावाहिक की केन्द्रीय भूमिका में प्रदेश   के कला, साहित्य एवं संस्कृति के क्षेत्र में विभिन्न विद्वानों एवं प्रतिभाओं   को प्रकाशमान करने का प्रयास। करीब 200 कड़ियां

12. चांदा सेठाणी-   जयपुर दूरदर्शन केन्द्र द्वारा निर्मित टेलीफिल्म में परामर्शक।

13. वृतचित्र कुम्भलगढ़- डीडी राजस्थान द्वारा निर्मित इस फिल्म के लिये शोध एवं पटकथा।

14. जयपुर की कठपुतलियां-   उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की प्रस्तुति की पटकथा।

15. संपादन एवं लेखन-   सन् 1965 से 1971 तक मासिक चेतन प्रहरी, बाड़मेर, साप्ताहिक
  जनगण, जोधपुर एवं दैनिक जलते दीप, जोधपुर का सम्पादन।

  देश की प्रतिष्ठित पत्रिकाएं धर्मयुग, दिनमान एवं मुक्तधारा और
  प्रदेश के विभिन्न दैनिक, साप्ताहिक एवं मासिक पत्र-पत्रिकाओं
  आदि में लेखन।

  विभागीय साहित्य का सम्पादन।

जागती जोत, माणक, सुजस और स्वर सरिता आदि पत्रिकाओं में विभिन्न विषयों पर शोधपरक फीचर का लेखन।


(1)ओ कांई हुग्यौ........RAJASTHANI SAHITYA

ओ कांई हुग्यौ, आज वगत नै, सब कोई बणग्यौ अणजाण।
ओ कांई हुग्यौ है, कुदरत नै, बध रैया आळ-जाळ अणमाण।।
बाळपणां री भोळप भावण, बाळरूप भगवान समान।
मायड़ गोद मचळतौ बचपण, बदळ गयौ उणरौ उनमान।।
किलकार्यां किसोरपणां री, जोबन नै झाला दैती सी।
फिसळ गई, कुटेवां-अैबां, मगसी होगी क्यूं मुळकांण।।
जजबाती जोबन रै सीगै, करड़ावण ई जबरी ही।
कुसंगत में उळझ गई वा, मरद जवानी हो सुसताण।।
अंजस हो भावी पीढ़ी पर, पढ़ लिख कर बणसी हुसियार।
पांतरगी वगत रै समचै, सूझै नीं वांरौ संधाण।।
बूढ़ापो वाजींद वडेरो, बदळ दियौ उण रौ उणियारौ।
बोदापण-सठियाया जिस्या, डामां-मैण्यां री घमसाण।।
अग्गम रौ आगोतर आछौ,  अंजस हो सारी जगती में।
पछ्म रा पागोत्यां, ‘पीथल‘ चढ़तांई चंपगी कड़पांण।।
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(2)सोसनिया आभो........RAJASTHANI SAHITYA

सोसनिया आभो सांच-मांच काळो-घोर-
दीसै सुख सगळौ कोरो, सावणिया लोर।।

मनसा हवेल्यां, बध जावै आभे तांई-
पिदा बधापै आगै, धमजावै, झूंपी तांई।
रुतवां रौ फैर-बदळ, जूंण कमजोर-दीसै सुख सगळौ..........।

जागण री वेळ्यां अबखी, बळता पसवाड़ा,
सोवण री ठोड़ संकड़ी, उखलता पड़वाड़ा।
जनानी खोळ्यां, राल्यां, पटूड़ां री सौड़-दीसै सुख सगळौ.......।

निसांसां- सिरावण,  भातां लग भाळीजै,
ब्याळू री बाटां, टंक अेक में टाळीजै,
मूंछा चावळ फुरकाणां, अबखाई रै दौर- दीसै सुख सगळौ.......।

डांडेड़ी धोती रै, कारी सूं जुड़गी कारी,
लुकजा लीरां जोड़ायत, आवै नीं लाज्यां मारी,
भूखी सुहागण, गूंथ्यां चीढ़ल्यां  को  बोर-दीसै सुख सगळौ.....।

डांडेड़ी धोती रै, कारी सूं जुड़गी कारी,
लुकजा लीरां जोड़ायत, आवै नीं लाज्यां मारी,
भूखी सुहागण, गूंथ्यां चीढ़ल्यां  को  बोर-दीसै सुख सगळौ.....।



(3)अंतस रा आखरRAJASTHANI SAHITYA

म्हारे अंतस रा आखर अे, रचना रा रूड़ा मोती है।
सिरजण री सखरी साख फैर, जनजीवण री आ ज्योती है।
आं में कुदरत री कमठाई, धरणी धार्योड़ौ धीरज है।
डीगा डूंगर है मंथण रा, उदध्यां रौ निरमळ नीरज है।।
हरियळ हेेताळू छिब आंरी, रूंखां री मीठी मिमझर है।
रुतवां री रूपल फैर रास, अंबर री निरखण निरझर है।।
करसां अर गांव, गांवेली री, हिम्मत हुल्लास पसेवौ है।
नेहचै नारायण, निबळा रै, मन रौ खारास कसेवौ है। 
आं में मरवण री मटकण है, लटकण है अखन कंवारी री।
लुळताई, लाली लजवण सी, गजबण सूरत सिणगारी री।
सूरज जैड़ी गरमाई है, निमळाई  निरमळ चंदा री।
टिमकण है शुक्र ध्रुव तारां,  गहराई सात समंदा री।
आं में अणगिणियां आलम है, अर अणजाण्या उणियारा है।
साचां री सबळी साख-सौझ, परमारथ रा पतियारा है।
मत कंवळा जाण‘र छिटकावौ, आं मांही करम कड़ाई है।
दूजौ धीणौ में नीं धार्यौ, आ ही तो अद्दल कमाई है।
आंमें है म्हारा सकल अंग, हीयै रौ गहरो पाणी है।
ईमान, धरम अर धन्न, धाम, आसा अस्सल हेमाणी है।
करड़ाई देख, सुणौ-समझौ, म्यानां पर म्याना सोध लेवौ।
अरथ, अनरथ अर सुकरत री, समझावण सगळी सोझ लेवौ।
देखौ ! थां आ ंमें खोजौ सच, मिल जावै जद, कहीज्यौ म्हन्नै।
म्हें रमग्यौ-गमग्यौ आं मांही, लाधै तो दे दीज्यौ म्हन्नै।
जै नीं लाधूं  तो  जावणद्यौ, लिखणा, भखणा सब कूड़ा  है।
कथणी-करणी री कायस ही, या सबद समंद सूं गू़ढ़ा है।
म्हनै तो मायड़ भाषा  री, भावी री भांतां भरणी है।
अग्गम री सबळी नींवां पर, चढ़णै री कसरत करणी है। 
आखर तो आखिर आखर है, आखर  ही आखिर कैवैला।
‘पीथल‘ कैवौ या थां कैवौ,  अंतस में आखर रैवैला।।
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(4)अंतस री ओळ्यांRAJASTHANI SAHITYA

आखर अंतस री ओळ्यां अै, आपत, आतम अर आगम है।
आ भाख भाखती भोभर है, निमखापण गैल गतागम है।
ओळख री इधकी आंख्यां  अै, सिरजण री सखरी सीरां है।
करम रौ मरम आं में है, कीं पुरसारथ री पीड़ां है।
आं में ही म्हारौ जलम है, थड़ियां अर अचपळ बचपण है।
किसोरपणां री किलकार्यां,  छिलतो जज्बाती जोबन है।
जुग री नींदां रा घेरा है, म्हारी कळपण रा सपना है।
आं में दूजां री दौरप है, कीं  दोजख  नीजू अपणा है।
कीं मीठी-मीठी बातां है अर तीखी-तीखी घातां है।
कीं  दीठा-दीठा दिनड़ा है अर काळी-लांबी रातां है।
कैई ओळ्यां है अंतस री, कैई है, आखर रा अंतस ।
इण सरोकार संसारी रै, जीवण रा घुटता सै अंजस।
कोई में मिमझर महके है, किणी में कोयल कूजीजै।
कोई में पदमण पिणियार्यां, ओळख अपणायत पौमीजै।
आं में माटी री मैरम है, खेतां री खतो-खतावत है।
करसै रौ पारस पसैवौ है, परझळती परख बगावत है।
मौके सर मूमल है, आं में, सूमल-दंसां री झांकी है।
करसण रै कष्टी कमतर री, निजर्यां कीं आंकी-बांकी है।
आं में आसा रौ अंज्जण है, मंज्जण है, मैला मिनखां रौ।
आसीसां पीड़ पसैवा री, भंज्जण गरवीला मिनखां रौ।
मायड़ भाषा-बधोत्तर री, आ ओळख है, अंतर मन री।
आ पोथी कोरी थोथी नीं, झळ है, परझळते जन-जन री।
आवै तो दाय राखजौ थैं, सम्हळाजौ, सांभै जो आंनै।
अंतस री ओळ्यां, हाजर है,  पाळी-पोसी है म्हें आंनै।
आ सारद मां री सुध-बुध है, म्हारी तो कोरी कायस है।
खारी, खोटी या खाटी है, म्हारी है, म्हनैं थ्यावस है।
अलूणी नीं, चाखो-परखो अर स्वाद मुजब अै जायज है।
‘पीथल‘ रै अंतस री ओळ्यां, गरजण में अस्सल सावज है।

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(5)धरती.....RAJASTHANI SAHITYA

म्हें हूं कुदरत री लाडेसर, धरणी है म्हारौ नांव घणौ।
अंबर सूं अळगी, आ उतरी, ले ब्रह्म अंड रौ अंसपणौ।
अवनि सूं ओळख है म्हारी, हूं कोख पहाड़ां-नदियां री।
दरखत म्हारा ई जायोड़ा, हूं मायड़ सगळा उदघ्यां री।
रुतवां सारी है साथणियां, बखत सर आय मिळै म्हासूं।
सूरज, चांदो अर तारावळ, दिन-रात सजावै कोडां सूं।
हरियल, रूपल, सोनल, स्यामल, है इधको रूप रंग म्हारौ।
कचनार, कसूंबी, गुलनारी अर लीलटांस सो अंग म्हारौ।
म्हें मनु, आदम, होवा री, दादी, पड़दादी, लड़दादी।
आदि जीवण सूं ओज्यूं तक, पीढ्यां दर पीढ्यां म्हें जादी।बि
मगना हाथी, कीड़ी कण ज्यूं, है जीव-जिनावर अणगिणिया।
जळचर, थळचर अर नभचर ई, म्हारी गोदी में विचरणिया।
रुतवां-रुतवां रौ राग अलग, अर फळ-फूलां रौ फैल जब्बर।
भांतां-हदभांतां, भरियोड़ी, भावां-भावां रौ साव जब्बर।
रिळयावण रूड़ौ, रूप जोय, खुद करै ईसको कुदरत है।
म्हारै थोकां रा थागां कर, उणरा सै खाता उदरत है।
पण म्हारी थां सूं अरजी है, सुणजौ रै म्हारा सरजादा।
इण जामण री ले आण आज, रखणी है इण री मरजादा।
इण पर जलम्योड़ा सगळाई, सगा है भाई-बंध थांरा।
अेकज ओदर में लुटियोड़ा, मत दूध लजाजौ थैं म्हारा।
राड़ां रै आडी बाड़ करौ, आ मायड़ री सिलावण है।
बेटी ब्रह्मांड री बिछड़ी म्हें, मत बिछड़ौ आ चित लावण है।
म्हें फिरूं बापड़ी बिछिड़ियोड़ी, पूछै नीं पीहर बात अठै।
इसड़ी मत करज्यौ जाया थां, बिछिड़ियोड़ा मिलस्यौ फैर कठै।
म्हारे हांचिळयां दूध अेक, म्हारा जिणियोड़ा पूत अेक।
अवनि रौ आंगण अेक-मेक, थां हो ही अेक, मिळ रहो अेक।
इणसूं ई थांरी जियारी, इणसूं ई रहसी सत म्हारी।
मत बणौ बापड़ा म्हां बैठा, पट जाय परैली पत थारी।
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(6)बिरखाRAJASTHANI SAHITYA

कुदरत री मोबी डिकरड़ी, बायर-बादळ री बैनड़ली।
धरणी री हेजू -हेताळु, बरसे री किस्मत केलड़ली।
आजा अे छिन्नू छिनगारी, थारी अगणवी आज करां।
पालर पाणी री पिणियारी भलवाणी मिळनै सैंग भरां।
भूरां भुरजां सूं उतर आव, बीजळ झपकाती-मदमाती।
किरोड़ूं कोड करां थारा, आजा बादळ ने बिलमाती।
छांट-छूंट मत ले छांटा, रिफझिम री झड़ ले आ गजबण।
धारोळा-धार  बरस, बर-बर, डूंगर, धोरां, धर कर बरसण।
अमूझ ऊठजा आड़ंग जद,  हिमळास हळूसे हर मन में।
ठाडावळ करदै ठुमका सूं, निमळास बापरै रजकण में।
धरणी रै सिरै कांठां पर, सतरंगी लहरियौ धनखदार।
औढ्यां ऊभी है जगती सब, सुर छेड़, धार सोहळै सिंगार।
आजा अे अचपळ अठखेलण, सूरज री सोनल सैनाणी।
मिमझर अर मोवन मोर पांख, साखां री सोवण सैलाणी।
निरख  वा बांदरमाळ सजी, नारेळ धरिया निछरावळ रा।
ऊभी सिणगारियां सहस देख, रंग औढ़ ओढ़णा मलमल रा।
अगवाणी पगल्या पोळ्योड़ा, अर चौक मंड्या धर पगल्यां नैं।
कोरे कंवळे जग-जोबन री, उडीक आज है सगळ्यां नै।
सज सुहाग रौ थाळ आज, ऊभी है नाडी नणदोल्यां।
बधावा गाय रैयी थारा, आगोर साज सिर बड़बोल्या।।
लाजां मत कर अे लजवंती, ओ आगोतर रौ आंगण है।
कड़ूंबो थारै सपनां रौ, गीतां रौ गोपीचंदण है।
मत संकै सूमल सोनचिड़ी, आ ऊमर ई आंटीली है।
बन कोयल, कांकड़ कुरजल सुण, आ करड़ावण कांटीली है।
मत देख बादळी सैनां सूं, संसार भरै है सिसकारी।
भरदै अे खाली खोळ आज, करदै अे रंग घन-पिचकारी।
आ वेळा थारी वेळा सुण, मूसारी मूमल मतवाळी।
माटी री मुळकण, मौज-मोद, बिरखा बिनणली नखराळी।
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(7)मरुधरा,  मधुर इण री वाणी.....RAJASTHANI SAHITYA

मायड़ रौ मोह, ममता, मुळकण, धीरज धार्योड़ी धणियाणी।  
म्हांरी मनभावण, मनरेळण, मरुधरा, मधुर इण री वाणी।।
मरुतां री भोम मरुधरणी, भूलोक, खगोल, भूगोल सिरै।
सिंधु, सुरसत, माही, बनास, चंबळ री छोळ चौफेर फिरै।
लूणी, रण कच्छ री लाडेसर, मरुभोम मंझारै घूम घिरै।
खळ्ळाट करै बह काक नदी, थळवट बिच सुवरण रेख तिरै।
खोळायत जिण री है कुदरत, अवनि री अस्सल हेमांणी-
म्हांरी मनभावण, मनरेळण, मरुधरा, मधुर इण री वाणी।।
वेदां में वरणित वन औखध, पसरी झाड़ा झंखारा में ।
सम्मियां, सीसम ज्यूं पांगर री, पावनता जब्बर जाळां में।
पूजै बड़, पीपळ, नीम, देव वासो जिणरा कुंडाळां में ।
हुळसै तुळसी में हेतराग, निरखण नित हरियल डाळां में।
करड़ावण कूमट, केर, बंवळ अर रोहिड़ा हद फूलांणी-
म्हांरी मनभावण, मनरेळण, मरुधरा, मधुर इण री वाणी।।
आडावळ जिणरी अगवाणी, हेमाळौ उत्तर भड़ किंवाड़।
सुमेर साख जिण धरती रौ, सींवा रौ साखी है सिंवाड़।
विंध्याचल अगूणी ओळख, डीगा डूंगर,  छप्पन पहाड़।
ऊंचा मरुधर रा धोरा ही, उभर्योड़ा मानो उच्च लिलाड़।।
बड़भागण, सदा सुहागण आ, कुदरत री करड़ी कमठाणी-
म्हांरी मनभावण, मनरेळण, मरुधरा, मधुर इण री वाणी।।
इणरौ रूपाळौ रूप देख, खुद कर्यौ इसको इंदराणी।
रहस्यां म्हें इसड़ी ठौड़ कठै, रीझ्या-मीझ्या लख मरुवाणी।
चढ आया ़देवराज फिर-फिर, मरुतां री मायड़ इण धरणी।
फिरिया, घिरिया, घिरिया, फिरिया, नीं भेद दिया आ धणियाणी।
जूंझ्या जिण ठौड़ सहस बरसां, हो इंदर देव खुद अगवाणी-
म्हांरी मनभावण, मनरेळण, मरुधरा, मधुर इण री वाणी।।
बिरमाजी वेद अभेद, भेद, अर ग्यान-विग्यान अठै रचिया।
गजानन मुख सूं सुण-सुण वे, खुद वेद व्यास जी अठै लिख्या।। 
ऋषियां, मुनियां, जपियां, तपियां, धर भेख अनेक अठै भजिया।
सिद्ध, साधक, संता अर, भगतां, इण कारण ई घर-बार तजिया।।
देवळ-देवळ में देव जठै,  पग-पग में वेदां री वाणी-
म्हांरी मनभावण, मनरेळण, मरुधरा, मधुर इण री वाणी।।
पसरोड़्या धोरा इण धर रा, पळकै चंदर अर मंगळ ज्यूं।
इण जुग रौ चांदे रौ औठी, निरख्यौ जद रंग कसूमल ज्यूं।।
मरुधर रौ मोवण रूप देख, मुळक्यौ मन, फूल कंवळ रै ज्यूं।
‘सुंदर‘-‘अति सुंदर‘ दो आखर, हुबक्या उण हिये उलळनै यूं।।
आपां रौ ओठीड़ौ नमियौ,  आभै सूं ओळख अैनाणी-
म्हारी मन भावण मन रेलण, मरुधरा और इणरी वाणी।।
बीतै जै चौरासी जूणां, जलम तो जलमूं अठैई।
म्हनै सुरग रौ चाव नहीं, धरम तो धरम अठैई।
करमां रा फळ कोई हुवौ, करम तो करम अठैई।
मोगस री मैरम हुवैली, म्हारी तो मैरम अठैई।
मानो अणमानेतण थैं चाहे, पीथळ मानेतण मरुवाणी-
म्हांरी मनभावण, मनरेळण, मरुधरा, मधुर इण री वाणी।।
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(8)म्हांरी  मुळकावण   न्यारी है........RAJASTHANI SAHITYA

मत  करौ  गिलगिल्यां माडाणी, म्हांरी मुळकावण न्यारी व्है।
मत  भरौ  खिलखिल्यां माडाणी, पीड़ां करड़ावण भारी व्है।।
आकास  भरी अबखायां सूं,  म्हांरौ  घर आंगण भारी व्है।
प्रिथवी  रै  पैले पुरख नै, खिंवणौ आंनै  लाचारी  है।।
आं-बाथेड़ा -लाचार्यां  रौ,  थौड़ौ ई तोल नहीं थांनै।
विखंडतै  मिनखीचारे  रौ,  चिन्यौई  मोल  नहीं  थांनै।।
मत करौ रिगलियां सांचाणीं, आंरौ आगोतर भारी व्है।
मत करौ  गिलगिल्यां माडाणी, म्हांरी मुळकावण न्यारी व्है।।
भूखां  मिनखां  री पेट-लाय  रौ, माप लेवणौ दोरौ व्है।
अंतस  में परझळती उण झळ रौ, ताप झेलणौ दोरौ व्है।।
म्हां सांभ रह्या  हां सदियां  सूं,  निरणां  रै सांसां री लपटां।
जांचां थांरी  अणमाप  भूख,   आफरता  ओझरां री  सपटां।।
मत करौ रागिळयां रंजियोड़ी,  गळगंठा,  सहणा  भारी व्है।
मत  करौ  गिलगिल्यां माडाणी, म्हांरी मुळकावण न्यारी व्है।
पाणी-पाणी री रट करतां, पीढ्यां  दर  पीढ्यां बीत गई।
कुदरत  री सिगरी  हांती  सूं, पांती  बांटण  री रीत गई।।
थां  तो  इतरा तिरसा   कोनीं, पण  थांरी  नियत  नेम नहीं।
तळाव,  बावड़ियां, टांकां में, जळ  संचण  रौ कोई  फैम  नहीं।।
मत करौ लीलड़ियां लंक लाणी, तिरसां  री तिरसण  भारी व्है।
मत  करौ  गिलगिल्यां माडाणी, म्हांरी मुळकावण न्यारी व्है।

रहवास मिनख  री ओळख व्है, आ बात कैवणी  मैणी है।
केई  बैठा  बिन  छांन अठै,  बरसां  सूं आही  रहणी है।।
मोटी महलायत है थांरै, बंगला, हवेल्यां ऊंची  है।
जो  सूता  सांमी पटड़ी पर,  उण री हालत कुण पूछी है।।
मत  भरौ  किड़किड़्यां झूंप्यां पर,  जन जागण आंरौ भारी व्है।
मत  करौ  गिलगिल्यां माडाणी, म्हांरी मुळकावण न्यारी व्है।।
गाभां लत्तां नै मत  परखौ,  लीरां ई म्हारै खीन खाब।
अंग ढंपणौ चहीजै, ढांपरह्या,  कर लाज-सरम अर रख्ख आब।।
पण थांरा तन री जबरी छिब, पोसाक थकां बिन बागां रौ।
म्हांरै ओछाई  मजबूरी,  थां  थोक  थकां ई  नागा रौ।।
मत  छेड़ौ इसड़ी सिळसिळयां, म्हांरी संभळावण भारी व्है।
मत  करौ  गिलगिल्यां माडाणी, म्हांरी मुळकावण न्यारी व्है।।

अणूंतां  हूंता  सांतर  ई,  थांरौ  जग रोवणौ  जारी  है।
आड़ू  अबखाई  आडी नीं,  दिन-रात रींकणौ  जारी है।।
नीं भूख  थकौ, नीं तिरस  छकौ, सुख  नींद सोवणौ आंझौ है।
रांचणिया रैवै  रांचणिया,  ओ मूळ  मापणौ  जांझौ है।।
मत भरौ गळगिळयां  माडाणी, सिसकारी भरणी भारी व्है।
मत  करौ  गिलगिल्यां माडाणी, म्हांरी मुळकावण न्यारी व्है।।
म्हांरी मानो नैठाव करौ, ऊमर रा दिनड़ा ओछा व्है।
संतोषी रैय सदासुखी, धीरज बिन धीणा पौचा  व्है।।
म्हांरो  पोखाळ  बोलायां ई, थां  तो रंजतोड़ा नीं दीसौ।
हकरी  मांगां,  हक री खातां, थां  डूर दळौ, कांकर पीसौ।।
मत लेवौ लाला-लालरिया, रंजियोड़ी दौरप भारी  व्है।
मत  करौ  गिलगिल्यां माडाणी, म्हांरी मुळकावण न्यारी व्है।।
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(नारायणसिंह पीथल)







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