दूहा, कुंडलियां,गीत,कवित्त अर छंद को गुलदस्तो छै- बिणजारा री बैलड़ी
( कवि - भवानी सिंह राठौड़ 'भावुक')
हेली कि इचरज कहूं , भावूक मांड्यो बेल
दूहा छंद कवित्त की रेल चली बई रेल
कि हेली अजरज कहूं भावूक छै रसराज
नेक अेक छै आदमी करै छै मा को काज -दिलीप सिंह हरप्रीत
कवि भवानी सिंह 'भावुक' अबार की बगत मं राजस्थानी साहितै मं जाण्यो - पछाण्यो नांव छै। आप राजस्थानी भासा मं मांडबा की लारां - लारां जठै बी राजस्थानी भासा को आंदोलन हौवें , व्हां आप जोर सोर सूं व्हींमें भाग लैवों छो। आप की यां मां राजस्थानी की पीड़ बी ईं पोथी मं ठाम - ठाम दरसाव दै छै, आप नं जतरी चोखी य्हां पोथी मांडी छै उतरो ईं आछ्यो आपको वैक्तित्व छै सा। म्हूं तो य्हां कांईं क्है सकूं कै आप मनख्यावड़ा मनख छो जो मनख जात सूं हैत परैम राखो छो, नं तो आजक्हाल मनख अेकलखोरो हो ग्यो, वूं बस अपणैआप मंईं राजी रैह्बो चावैं छै।
ल्यों आओं पोथी की आडी चालां... नेहभरा निमंत्रण का रूप मं पोथी की सरूआत मं ईं कवि की आडी सूं, परैम सूं नूंतो छै पोथी नं जीमबा का'ण।
कवि को लेखन मंगळाचरण सूं सरू होबी करै छै, मा सुरसत की लार सबी भगवान को धियान कवि मन सूं करै छैं।
सिंवरूं माता सारदा, हिरदै में ध्यान।
गणनायक री मावड़ी, राखौ म्हारो ध्यान।।
काटौ दुखड़ा करनला - माँ करणी सूं कवि अरज करै छै, व्हांको बखान, व्हांरो हैत, व्हांरी सगति,व्हारां परचा को गुणगान करै छै।
जो अस्यां छै -
मोटो मुरधर मांयनै, नवलख सगत्यां नांव।
करणीजी किरतार री, छाये सिरपै छांव।।
नारायण रो नांव - मं कवि भावुक सा नं भगवान को नांव ईं मुखेै बतायो अर जीव जगत कै तांईं झूठो अर मिथ्या बतळायों ।
जीवण दो दन को मैळो छै, अेकदन सब छोड़ छाड़ कै चल्यो जाणो छै --
भजणौ नित भगवान नै, करतां घर रा काम ।
अंतकाळ मं आवसी, नारायण रो नांव।।
भजले मन भगवान -- कवि मांडै छै, कै भगवान का भजन कदी बी व्यर्थ नं जाबो करै छै अर भगता का उदाहरण दैर'र कवि नं भगवान अर भगता की महिमां मांडी छै --
भजन करै भगवान रा, करमां रांधे खीच।
जीम लिया भगवान जी, भरे गांव रै बीच।।
पूंजूं पांचू पीर -- 'रामगोपाल है'
रा - रामदेव जी
म - मांगळिया मेहाजी
गो - गोगाजी
पा - पाबूजी
ल - ( - )
है - हड़बूजी
पांचू पीर की महिमां कवि नं घणी ईं ओपती थकी मांडी छै।
बाबा रामसा पीर को संदो वरणाव कवि नं - 'अजमल रा अवतार' विसै सूं कर्यो। कवि दुखियां मनखा की अरदास बी अपणी रचनावां मं लगावैं छै।
कवि मन हौंवे ईं दयावान छै, कवि भावुक सा नं बी मनख समाज सूं पंछीया की अेर सेर करबा की अर दाणा पाणी डालबा की अरज करी छै --
म्हंनै बचाओ मानवी, लगी जै काळजै लाय।
दाझ मिटावो दैह की, ठंडो नीर पिलाय।।
गरमी बाढी गजब री, लुक छीप रैवां मीत।
दाणो पाणी दैयने, पाळ पंखेरूं प्रीत।।
कवि नं अहम कै तांईं बरो अस्यां बतायो छै अर आप मांडै छै --
अहम कदै न पाळणो, अहम करै है अंत।
अंतस प्रीत अपार व्है, सार कहै है संत।।
अर समाज का बुरा करमा नं दैख कवि कै तांईं लिखता ईं लाज आबा लाग जावै छै अब तो।
बातां हैत बढायदै, बातां रेत रळात।
बोलो बाणी सांतरी, बैरण बण ज्या बात।।
य्हां कवि बात सोच समझर बोलबा को संदेस दैवें छै।
कळजुग को काळोपण देख कवि मांडै छै -
सांचा साधु लोपिया, तपै हिंवाळै जाय।
मिनख पणै री मौत सूं, लुच्चा रोळ मचाय।।
कवि का हिसाब सूं अब मनखपणो मर चुक्यों। कवि समाज नं भायां नं कदी नं भूलबा की सलाह दैंवे छै।
महाराणा प्रताप की महिमां - -
आडावळ ज्यूं अडिग हो, वन - वन कीनौ वास।
पूंजू पग परताप रा, सूरां तणी सुवास।।
गौरी गौरे गात मं कवि सणगार रस मांडै छै। भगतो के राजा-कान्हा ,कान्हो सारो काज मं कान्हा की लीलावां,व्हांका काज को वर्णन छै। जोधपुर/मारवाड़ को निराळो चितराम छै - 'जगचावो जोधाण' मं।
कवि मुहोदय गांव सूं संबंध राखै अर गाय गौरी गंगा का महताऊ नं समझै छै, आप मांडो -
गायां रांभत गौरवे, बछिया कूदै बाड़।
उण घर सांची संपदा, कदै नीं हुवै राड़।।
गोडावण बच जाय - लुप्त होता गोडावण पंछी की पीड़।
पाणी ग्यो पताळ - क्हाल म्हंनै अेक वीडियो देख्यों छो जीं मं पाणी बी गधा की सहायता सूं खांडणी पडर्यो छै, वूं वीडियो आपणे राजस्थान को ईं छो --
सौंवे मत ना सायबा, सूख्यो सरवर नीर।
पाणी ग्यो पताळ मं, अंतस हुयो अधीर।।
कवि मनखां सूं चोखा काम करबा को आह्वान करै छै। फागण रूत को रंगीलो रचाव, सखी री पांति, राजस्थान की आंधी को दरसाव।
सुख - दुख का दूहा बी कवि मांडै।
क्षत्रिय कर दै छाँव - - जद्यां कोई बी काम नं आवैं वूं बगत राजपूत ईं छातो बण'र छाँव करै छै दुख्यां मनख कै। नेता सब्यां नं लड़ार खुद मौज करै छै य्हांकी बातां नं समझ'र य्हाँईं अेक आडी करो फरा। कवि मेह सूं पावणा बण'र पधारबा की अरज करै छै।
गावे गौरी गीतड़ा, ऊंचै हींडे आय
ओढे लहरियो ओपतो, सावण जद सरसाय।।
सावण को रूपाळो चतराम छै।
राजीमन अरपण रगत, रज-रज राजस्थान।
जान बचालै जायकै, दौड़ रगत कर दान।।
रगतदान कै बैई जनजागरण।
मेहनतकश मजूर --
मोटा भाटा मेलिया , दिन भर घर सूं दूर।
महल चिणै है मौकळा, मेहनतकश मजूर।।
कवि राजस्थान का सूरवीरां को बखान करै, परबत जसीं पीड़ कै तांईं उदाहरण दैर आपां नं समझावैं --
राधा मोद मनावती, जळ जमना री तीर।
श्याम बस्यो जा द्वारका, परबत जैड़ी पीर।।
दो घर करै उजास इसी जसनायक बेटी - बेट्यां का जनम पै दुख की ठाम पै खुशियां मनाणी चाइजै।
गांव का मनख रूजगार पाबा का'ण सअर चल ग्यां अर पाछै छोड़ ग्या सूनां गांव।
सतमारग चालण सरू करो! थै थामो लीका बड़गा री ... सत पै चालबा सीख सिखाता थका कवि मांडै छै। बादळी को रूपाळो चितरण करै छै। बाळपणे का बे मीत सूं , बाळपणां की यादां नं हरी भरी कर दैवें छै। परतापी राजो हिंदवाण मं राणा प्रताप को तेज अर शौर्य छै ।
कवि सब्यां नं राजी - राजी रैह्बा की सीख दैंवे छै - 'राखो अेको राजवीं'
बेटी पढाबा की अरज अर धन डायजा सूं चोखो छै कै आपां गुणवान लाडी लावां।
रूड़ौ राजस्थान जी - मुरधर देस को गान
मुरधर म्हांरो देस सोंवणो , मीठी बोली घणी जचौ
लांबा छिणगा पाग घुरावै, मोजड़िया री छाप जचौ
मोटी मूंछा फर फर करती डीगा मनखा खूब जचौ ।।
हां , एक रात आप देखज्यों में राष्ट्रकवि बण जावूंलो
ईं सुपरफास्ट जमाना मं म्हें फास्ट कवि बण जावूंलो।। -- हास्य व्यंग की दीठ।
नुईं पीढी सूं संवाद करता थका कवि पराणा बगत की बातां अर अबखायां नं याद दिलावै, पण ऊं बगत वूंमैं ईं मौज छा।
क्षत्राणी माँ को दरसाव
गांव गौरवे राड़ मंडी जद, खोल किवाड़ी बा आई
साचा-साचा बोल सुणाकै हाथां भाटो पकड़ाई
फौड़ भोगनो आजै घर में मूंड फुडा़कै ना आई
क्षत्राणी मा सीख पूत दी रणकौशल की सिखलाई।।
ईं तरां सूं कवि भावुक सा नं अपणा भावुक,भगत,वीर,सणगार,वात्सल्य,करूण अर प्रेमी मन सूं बौत ईं स्यानदार खानाबदोश जीवण की नांईं नुंआ - नुंआ विसया,जग्यां,ठांम पै भ्रमण करबा हाळा बणजारा मन सूं मांड दी यां लोकलुभावन रूपाळी कृति बिणजारा री बैलड़ी
यां पोथी ईं धरा लोक मं, बिणजारा की नांईं फरती - फरती अेक दन ईं की सई ठांम पै पूग जावैगी असी म्हूं मंगळकामना करूं छूं अर पोथी नं रचबा हाळा हैताळु हुकम भवानी सिंह भावुक सा नं हिरदा की ऊंडाईं सूं घणी- घणी सुभकामनावां दैता थकां, आपकी नुंई पोथी की उडीक मं ..
२९/०५/२०२३
सोमा'र
दिलीप सिंह हरप्रीत
कोटा, राजस्थान
ठि. हिण्डोली, बूंदी
कानबाती -9785262839
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