Nunwo Rajasthan News Portal

हर ख़बर, साँची ख़बर

Breaking

Post Top Ad 2

Your Ad Spot

बुधवार, 29 मार्च 2023

राजस्थानी भाषा के बिना राजस्थान दिवस का कोई औचित्य नहीं - महाराजा गजसिंह


राजस्थानी भाषा के बिना राजस्थान दिवस का कोई औचित्य नहीं - महाराजा गजसिंह
जोधपुरः 29 मार्च।@nunworajasthan
●एक दिवसीय ‘राजस्थानी भाषा रौ जलसौ’ कार्यक्रम सम्पन्न
जोधपुर। राजस्थानी भाषा को विश्व की श्रेष्ठतम भाषा माना गया है। राजस्थान का सांस्कृतिक गौरव अपने आप में अद्वितीय है। मगर राजस्थानी भाषा की संवैधानिक मान्यता एवं राज भाषा का दर्जा के बगैर राजस्थान दिवस का कोई औचित्य नहीं है। यह विचार महाराजा गजसिंहजी द्वारा महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश शोध केन्द्र, मेहरानगढ़ म्यूज़ियम ट्रस्ट, रा.सा.म. आडावळ उदयपुर, राजस्थानी युवा समिति, राजस्थानी भाषा संघर्ष समिति, राजस्थानी मोट्यार परिषद् एवं समस्त राजस्थानी भाषा मान्यता संस्थाओं के संयुक्त तत्वावधान में एक दिवसीय ‘राजस्थानी भासा रौ जळसौ’ के समापन समारोह में कही। उन्होंने कहा कि राजस्थानी भाषा का प्रश्न प्रदेश की अस्मिता से जुड़ा हुआ है। मगर राजनैतिक उदासीनता के कारण राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता नहीं मिल रही है। इसके लिए हम सभी को एकसाथ सकारात्मक कार्य कर इस भाषा को मान्यता दिलानी होगी। 
कार्यक्रम आयोजक महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश शोध केन्द्र के सहायक निदेशक डॉ महेंद्रसिंह तंवर ने बताया कि समापन समारोह के मुख्य अतिथि प्रो. जहूर खां मेहर ने कहा कि राजस्थानी का आंदोलन देश की आजादी से पहले प्रारम्भ हुआ जो विगत 80 वर्षों से लगातार चल रहा है। मगर राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता नहीं मिलना प्रदेश का दुर्भाग्य है। 

समारोह के विशिष्ट अतिथि डॉ. आईदानसिंह भाटी ने कहा कि राजस्थानी आंदोलन में युवा शक्ति का आना बहुत सकारात्मक है। इसलिए हम सब को एकजुट होकर राजस्थानी भाषा की मान्यता के प्रयास करने चाहिए। डॉ. गजेसिंह राजपुरोहित ने एक दिवसीय आयोजन का समाहार प्रस्तुत करते हुए कहा कि देश की आजादी के पहले भी मारवाड़ राजपरिवार का अपनी मातृ भाषा के प्रति सच्चा समर्पण था और वर्तमान में भी महाराजा गजसिंहजी के प्रयास बहुत ही सराहनीय एवं ऐतिहासिक हैं। निःसंदेह राजस्थानी भाषा साहित्य के लिए यह गौरव की बात है।
 इस अवसर पर राजस्थानी मोट्यार परिषद के अध्यक्ष शिवदानसिंह जोलावास ने जोधपुर घोषणा पत्र प्रस्तुत किया। राजस्थानी युवा समिति के अध्यक्ष हिमांशु शर्मा ने आगामी रणनीति पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए महाराजा गजसिंहजी के नेतृत्व में आंदोलन को गति देने का संकल्प लिया। 


कार्यक्रम के प्रारम्भ में डॉ. महेन्द्रसिंह तंवर ने स्वागत उद्बोधन दिया। डॉ. गजेसिंह राजपुरोहित ने समापन समारोह का संचालन किया। 
डॉ. तंवर ने बताया कि इस एक दिवसीय राजस्थानी जळसै का उद्घाटन समारोह प्रातः  10.30 बजे से प्रारम्भ हुआ जिसमें राजस्थानी भाषा के विद्वजनों द्वारा ‘राजस्थानी भाषा की संवैधानिक मान्यता का संघर्ष (दिनाजपुर अधिवेशन से आज तक)’ विषय पर अपनी बात रखी। इसमें राजस्थानी युवा समिति के अध्यक्ष हिमांशु शर्मा, डॉ. रामरतन लटियाल व आडावळ के संस्थापक अध्यक्ष शिवदानसिंह जोलावास ने अपने विचार व्यक्त किये। इस सत्र में वक्ताओं द्वारा अब तक किये गये संघर्ष और रूपरेखा पर चर्चा की और बताया कि किस तरह सरकारों द्वारा पिछले 5 दशकों से अधिक समय से हमारी मांग को माना नहीं जा रहा है जबकि राजस्थानी का साहित्य 2500 वर्ष पुराना व समृद्ध साहित्य है। उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता वरिष्ठ राजस्थानी कवि डॉ. आईदानसिंह भाटी ने की और संचालन डॉ. महेन्द्रसिंह तंवर ने किया।
द्वितीय सत्र ‘राजस्थानी-प्राथमिक शिक्षा में महत्व एवं रोजगार के अवसर’ विषय पर हुआ जिसमें युवा लेखिका तरनिजा मोहन राठौड़, युवा लेखक डॉ. रामरतन लटियाल, महेन्द्र छायण ने विचार व्यक्त किये। इस सत्र की अध्यक्षता डॉ. आईदानसिंह भाटी ने की और संचालन युवा लेखक डॉ. इन्द्रदान चारण ने किया। इस सत्र में सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह उभर कर आई कि मातृ भाषा की शिक्षा का प्रारम्भ घर से ही होना चाहिये। साथ ही प्राथमिक शिक्षा भी मातृ भाषा में होने पर ही हम अपने उद्देश्य में सफल होंगे और रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।
 
दिन का तृतीय सत्र ‘राजस्थानी पत्र-पत्रिकाओं की दशा और दिशा’ विषय पर हुआ जिसमें लेखक एवं पत्रकार मनोज स्वामी, श्री भवानीसिंह ‘भावुक’, विरेन्द्रसिंह चौहान ने अपने विचार व्यक्त किये। इस सत्र में वक्ताओं ने बताया कि राजस्थानी पत्र-पत्रिकाओं की दिशा तो ठीक है, इसके समृद्ध साहित्य का निरन्तर प्रकाशन हो रहा है, लेकिन इसकी दशा बहुत ही सोचनीय है। इसके लिए सभी राजस्थानी भाषा के पाठकों, भाषा प्रेमियों को इससे जुड़ना चाहिये ताकि पत्र-पत्रिकाएं राजस्थानी भाषा की ताकत बन सके। इस सत्र का संचालन तरनिजा मोहन राठौड़ ने किया। 
तीन सत्रों की समाप्ति के पश्चात् राजस्थानी कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ जिसमें युवा कवियों में वाजिद हसन काजी, महेन्द्र छायण, रतनसिंह चाम्पावत, डॉ. शक्तिसिंह खाखड़की, नाथूसिंह इन्दा, कृष्णपालसिंह राखी, सत्येन्द्रसिंह चारण, राजस्थानी भाषा में कविता पाठ कर श्रोताओं की दाद लूटी। इस सत्र का संचालन युवा कवि डॉ. जितेन्द्रसिंह साठिका ने किया। 
इस एक दिवसीय कार्यक्रम में अलकेश विश्नोई, गोपालसिंह राठौड़, पुष्पेन्द्रसिंह, करणीशरण रतनू, डॉ. अमित गहलोत, महेन्द्रसिंह लूणसरा, हेमेन्द्रसिंह तेना, हनवन्त चारण, नेमीचन्द सुथार, अरूणा राजपुरोहित, प्रवीण मकवाना, मनीष कुमार, नीतू राजपुरोहित, वर्षा सेजू, विष्णु शंकर, राजेन्द्र शाह, सुरेन्द्र स्वामी, राजाराम स्वामी, प्रशान्त जैन, डॉ. सलोका सेन गुप्ता, डॉ. विमलेश राठौड़, नवीन कंवर, मीनू कंवर, रामदेव वीर, भींवसिंह राठौड़, विक्रमसिंह, कैलाश दान, रणजीत ज्यांणी, शैलेश माथुर, घर्मांशु बोहरा, विक्रमसिंह कोळू,, कैप्टन लक्ष्मणसिंह इत्यादि गणमान्य नागरिक एवं मातृशक्ति उपस्थित थे। 
 
               डॉ. महेन्द्रसिंह तंवर
सहायक निदेशक
     म.मा.पु.प्र. शोध केन्द्र, मेहरानगढ़

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Post Top Ad 3

https://1.bp.blogspot.com/-LCni8nj6Pf0/YTK0cUKNSsI/AAAAAAAAA0U/wVPSwz7KZ7oI9WshKzLewokpker4jMqRQCLcBGAsYHQ/s0/IMG-20210903-WA0020.jpg