बहलोलनगर में राजस्थानी को मिली मान्यता
●राजस्थानी 372 + पंजाबी 85 + हिन्दी 00 = कुल विद्यार्थी 457
हनुमानगढ़ः१४ जनवरी।
राजस्थानी भाषा को व्यवहार की भाषा बनाकर मान्यता देने वाले दुनिया के पहले मॉडल गांव बहलोलनगर में हर दिन राजस्थानी के लिए काम होता है। राजस्थानी के प्रचार प्रसार के लिए यहां का हर युवा काम कर रहा है। इसी गांव में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय बहलोलनगर के शाला दर्पण पोर्टल में एक भी बच्चे की मातृभाषा राजस्थानी दर्ज नहीं होने का मुद्दा उठाया गया।
इस पर प्रधानाचार्य श्री भागीरथ स्वामी ने तुरंत कार्रवाई करते हुए राजस्थानी विद्यार्थियों की मातृभाषा राजस्थानी दर्ज की है। गौरतलब है कि आंकड़ों में पहले जहां एक भी बच्चे की मातृभाषा राजस्थानी नहीं थी। अब वहां सुधार करने के बाद एक बच्चे की मातृभाषा हिंदी नहीं है। शाला दर्पण पोर्टल में बच्चे की मातृभाषा के ऑप्शन में बहुत सारी भाषाएं दर्ज है परंतु राजस्थानी सबसे नीचे है। इस बॉक्स में राजस्थानी भाषा सबसे ऊपर दर्ज होनी चाहिए। सरकार एक मुहिम चलाकर पूरे राजस्थान में बच्चों की मातृभाषा राजस्थानी दर्ज करे। शिक्षा का माध्यम बी राजस्थानी होना चाहिए राजस्थान के बच्चे आगे बढ़ सके। वहीं गांव के जागरुक ग्रामीणों का कहना है कि राजस्थानीयों पर जानबूझकर हिंदी थोपना सरासर गलत है। हमारे गांव में तो हर काम राजस्थानी भाषा में ही होता है। दूर-दूर तक रिश्तेदारी में भी जाते हैं तो राजस्थानी गांव बहलोलनगर की जब बात करते हैं तो बहुत ही गर्व महसूस होता है। राजस्थानी भाषा को बरत्यूं की भाषा बनाकर मान्यता देने से हमारे गांव की जो पहचान बनी है उसमें हरीश हैरी का बहुत बड़ा योगदान है। गांव के युवाओं और दुकानदारों ने इस मुहिम में बढ़ चढ़कर भाग लिया। गांव के लोग बैनर, पोस्टर, जागरण के कार्ड, ट्राली, हेल्मेट, मुहर्त, विजिटिंग कार्ड, शोक संदेश, मंच संचालन, कॉमेंटरी, स्वागत बैनर से लेकर सोशल मीडिया तक हर काम राजस्थानी में ही करते हैं। बहलोलनगर से शुरू हुए इस आंदोलन को पूरे राजस्थान में फैलाया जा रहा है। राजस्थानी भाषा ने पूरे गांव को जो मान सम्मान पूरी दुनिया में दिलाया है वह कभी सोचा भी नहीं था। सोशल मीडिया पर आपणो राजस्थान आपणी राजस्थानी फेसबुक पेज पर हर जमीनी काम अपलोड किया जाता है जिसे लोगों द्वारा खूब पसंद किया जा रहा है। लोग अपने अपने गांव में इससे प्रेरणा लेकर राजस्थानी को बरत्यूं री भाषा बना रहे हैं।
राजस्थान के एक ग्रामीण विद्यालय के बच्चों की मातृभाषा भूलवश हिंदी दर्ज करना गलत है। सॉफ्टवेयर में राजस्थानी सबसे ऊपर दर्ज होनी चाहिए ताकि इस तरह की भूल आगे ना हो। घर में अपनी माता से बच्चा जो भाषा बोलता है वही मातृ भाषा कहलाती है। विद्यालय में 372 राजस्थानी और 85 पंजाबी मातृभाषा वाले विद्यार्थी पढ़ते हैं जबकि हिंदी मातृभाषा वाला कोई विद्यार्थी नहीं है। हिंदी हमारी मातृभाषा ना होकर केवल राजकाज की भाषा है। राजस्थानी भाषा को मान्यता मिलने से प्रतियोगी परीक्षाओं में राजस्थान के मूल अभ्यर्थियों को बहुत बड़ा फायदा होगा।
— भागीरथ स्वामी , प्रधानाचार्य राज. उमावि बहलोलनगर
राजस्थान मै मायड़ भासा रै नांव पर कोई बी ओपरी भासा थोपणी गळत है। आपणै राजस्थान मै तो आपणी राजस्थानी ई चालसी। राजस्थानी नै खत्म करगे राजस्थानीयां नै गुलाम बणावण री साजिश कदी कामयाब कोनी होवण देवां। राजस्थानी भासा आपणी पिछाण है। आखो जगत जाणै है कै राजस्थानी शूरवीर मर मिट सकै पण आपगी पिछाण पर दाग कोनी लागण देवै।
— हरीश हैरी, राजस्थानी भीरी
आपणो राजस्थान आपणी राजस्थानी
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