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शुक्रवार, 15 अप्रैल 2022

सैणां हंदी सीख' पुस्तक नई पीढी को मार्गदर्शन कराती है-भवानीसिंघ 'भावुक'

'सैणां हंदी सीख' पुस्तक नई पीढी को मार्गदर्शन कराती है-भवानीसिंघ 'भावुक'
 बज्जू तहसील में  अपना निजी कार्य पुरा होने के बाद मैने आदरणीय संग्रामसिंह जी सोढा (जो मेरी  प्रथम साहित्यिक पाठशाला कलम अर कटार व्हाटस एप समूह के साहित्यिक शिक्षक थे) को फोन लगाया और बरसों पुरानी दर्शनों की उत्कंठा को व्यक्त करते उनके गांव पहुंचने का रास्ता पूछा। कुछ समय बाद उनके भतीजे श्यामसिंह सोढा बस स्टेंड पर मिलने आये। रामा स्यामा करने के बाद मैं,मेरे दादाभाई भीकसिंह जी और श्यामसिंह जी बस में सवार हुए और तकरीबन एक घंटे तक धोरों की धरती की यात्रा करते हुए बरसलपुर माईनर के उस पार 68 आर.डी. गांव सोढों की ढाणी सचियापुरा पहुंचे।
सड़क से 100 मीटर दूर मेरे गुरुदेव संग्रामसिंह जी अपने रावळे के सामने हमारा इंतजार करते हुए मिले।गुरु शिष्य का भावभरा प्रथम मिलन हुआ।  सोढाण संस्कृती के अनुरुप मेरा एक गिनायत के तौर पर भावभरा स्वागत हुआ।भोजनोपरान्त देर रात तक साहित्यिक चर्चा चलती रही। मरुधर के धोरों में खुले आसमान के नीचे बिछे 'माचों' पर हम लेटे लेटे हम बातें करते रहे,एक दूसरे की रचनाएं सुनी -सुनाई, माटी की सौरमयुक्त खुली शीतल हवा के थपेड़ों से कब आंख लगी और नींद के आग़ोश में पहुंचे पता ही नहीं चला।
प्रातःकाल भोजनोपरान्त विदाई का समय आया। आदरणीय सोढा साहब ने अपनी स्वरचित पुस्तकें 'सैणां हंदी सीख' और 'शिक्षा की सार्वभौमिकता' भेंट की।

'सैणां हंदी सीख' राजस्थानी भाषा में रचित सोरठों का संकलन है।राजस्थानी साहित्य में दोहा और सोरठा ही ऐसे छंद है जो अपने छोटे आकार में बड़ी बात कहने का दमखम रखते है।  इस पुस्तक में रचे सोरठे संबोधन सूचक नीतिपरक सोरठे है। आदरणीय संग्रामसिंह जी का बचपन और पूरा जीवन थार के मरुस्थल में बीता। अतः इस पुस्तक के अधिकांश सोरठों में मरुस्थल की छवि दिखाई देती है।श्यामसी के सोरठों में इन्होने ऐसी नीतिगत बातें कही है जिनके पालन से मनुष्य का जीवन सुधर सकता है। पर्यावरण रक्षण की महता का बखाण करते हुए कवि कहते हैः
वनखंडां वनराय,महक लुटावै जगत में।
थिर रहतां सुख थाय,सावळ सींचो श्यामसी।
थार की तपती दोपहरी के प्रभावयुक्त इस सोरठे के बहाने कवि खुद कष्ट झेलकर परोपकार की शिक्षा देते हुए कह रहे हैः
करणो पर उपकार,लूआं लपटां झेलता।
सत जीवण रो सार,सत-पथ चालो श्यामसी।
इसी तरह शिक्षा की महता पर प्रकाश डालते हुए कवि कह रहे हैः
भणिया गुणिया लोग,ज्यां री मैमा जगत में।
 मेटै तम रो रोग,साख सवाई श्यामसी।।
कवि अपनी कलम से पुरुषार्थ, भाईचारा,नशामुक्ति,समय-सार,मधुर संभाषण,उज्जवल चरित्र,अंधविश्वास से मुक्ती इत्यादी विभिन्न विषयों को समेटते हुए आम बोलचाल के शब्दों के सहारे रचित सोरठों के माध्यम से अपनी बात जन जन तक पहुंचाने में पुर्णतया सफल होते है।
श्यामसी,खेतसी,देवसी,मघनसी, भोमजी,पेमला और लेखिया जैसे अपने निकटतम परिजनों के सहारे कवि संग्रामसिंह सोढा राजस्थानी साहित्य में नीति के सोरठे रचते हुए सैणां हंदी सीख पुस्तक के माध्यम से नये कीर्तिमान बनाते हुए दिखाई देते है।
इस पुस्तक में कुल 256 सोरठे है जिनके माध्यम से कवि संग्रामसिंह सोढा आने वाली युवापीढी के द्वारा सशक्त,कर्मठ,गुणवान,प्रकृतिप्रेमी,सदाचारी,धार्मिक,व्यवहारकुशल,नशामुक्त समाज की रचना करने का भरसक प्रयास करते हुए दृष्टिगोचर होते है।
कुलमिलाकर पुस्तक सैणां हंदी सीख सभी विधालयों में बच्चों को पढाने योग्य है। हमारे पाठ्यक्रमों में ऐसी ही पुस्तकों की आवश्यकता है जिन्हे पढकर बालक अपने जीवन में सफलता के पायदान चढ सके।
सोढा श्री 'संग्राम',रच्या सोरठा सांतरा|
गरबीली गुणधाम,'सैणां हंदी सीख' है||
समीक्षकः भवानीसिंघ राठौड़ 'भावुक'
टापरवाड़ा (नागौर)
सम्पर्कः 7016136759
पुस्तक नामः सैणां हंदी सीख
(राजस्थानी सोरठा संग्रह)
पृष्ठः 80
मुल्यः 100 रुपये।
लेखकःसंग्रामसिंह सोढा
प्रकाशक/पुस्तक मिलने का पताः
सोढाण लोक साहित्य सदन
चक सचियापुरा (68 आर.डी.बरसलपुर ब्रांच)
पो.बज्जू,तहसील कोलायत,जिला-बीकानेर (राज.)334305
सम्पर्कः9983181510

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