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रविवार, 22 अगस्त 2021

कैसी रक्षा-कैसा बंधन।

कैसी रक्षा-कैसा बंधन।
●दरकते रिश्तों और टूटते कच्चे धागों से अब बदल रहे हैं रिश्तों के मायने
●कलयुग कहें या भौतिकवादी युग-पद, पैसा और प्रतिष्ठा हो गए बलवान
●अहंकार इतना ज्यादा, एक कोख से जन्मी औलादें में पनप रही है खाई
●अहंकार और घमंड लील रहा है अपनापन व भाई-बहन के रिश्ते को
प्रेम आनन्दकर, अजमेर।
जी हां, यह कुछ ऐसे वाक्य हैं, जो वर्तमान और इस कलयुग में रिश्तों की सच्चाई को बयां करने के लिए काफी हैं। भले ही हर साल रक्षाबंधन यानी राखी का पर्व मना लें, लेकिन इस हकीकत से भी मुंह नहीं मोड़ सकते हैं कि अब सब-कुछ धीरे-धीरे बदलता जा रहा है। अनेक ऐसे परिवार होंगे, जहां भाई-बहन के बीच आज भी वही रिश्ता कायम है, जो कभी एक घर-आंगन में खेलते, पढ़ते और साथ-साथ जीवन में आगे बढ़ते हुए हुआ करता था। लेकिन अनेक परिवार ऐसे भी होंगे, जिनमें सगे भाई-बहन यानी एक मां की कोख से जन्म लेकर युवा होने और शादी होकर जीवन की नई शुरूआत करने तक गहरा नाता था। किंतु शादी होने के बाद ऐसा क्या हुआ कि आज सगे भाई-बहन के रिश्तों में खाई पैदा होने लग गई है। आखिर क्यों ऐसी स्थिति पैदा होती है या हो रही है, इसका कारण जानने के लिए मैंने अनेक ऐसे परिवारों की कहानी जानने का प्रयास किया। उत्तर में छिपे यह कारण ही दिखाई दिए-पद, पैसा और प्रतिष्ठा। चौथा सबसे बड़ा कारण है मां-बाप की संपत्ति पर अधिकार या हिस्सेदारी। मुझे आज तक यह बात समझ में नहीं आई कि क्या सगे भाई-बहन के बीच झगड़े के यह चार कारण क्यों पनप रहे हैं। यदि यही कारण वास्तव में झगड़े की जड़ हैं, तो सवाल उठता है कि शादी से पहले यह झगड़े क्यों नहीं हुए। झगड़े के कारण चाहे जो भी हो, लेकिन संबंधों की नाजुक डोर को इतना भी मत खींचो कि वो हमेशा के लिए टूट जाए। यदि भाई अच्छा पढ़-लिखकर अच्छी नौकरी लग गया या लग जाता, तो उसे इतना घमंड हो जाता है कि बहन ही नहीं, अपने माता-पिता व अन्य रिश्तेदारों को भी ’’कुछ नहीं’’ समझता है। इसी प्रकार यदि बहन भी सरकारी या मोटे वेतन वाली प्राइवेट नौकरी पा लेती है, तो अपने भाई ही नहीं, नाते-रिश्तेदारों से भी खुद को ज्यादा ऊंचा समझने लगती है। लेकिन यह बात कोई नहीं समझता है कि यह सब समय का फेर है। अपना अच्छा समय देखकर किसी को भी घमंड या अहंकार नहीं करना चाहिए। आज रक्षाबंधन के दिन अनेक ऐसे परिवार भी होंगे, जहां भाई-बहन होते हुए भी ना बहन ने भाई की कलाई सजाई होगी और ना ही भाई ने बहन से कहा होगा कि आज के दिन मेरी कलाई सूनी मत रख, जिंदगी में लड़ाई-झगड़े तो ऐसे ही चलते रहते हैं या चलते रहेंगे। ऐसा नहीं है कि जिंदगी में हमारी कभी किसी से लड़ाई नहीं हुई हो या कभी होगी ही नहीं, लेकिन संबंधों को इनके पीछे तोड़ना कहां की बुद्धिमानी है। यह संबंध ही हमारी जिंदगी की थाती हैं। यह भी जिंदगी में याद रखना-पद, पैसा और प्रतिष्ठा हमेशा साथ नहीं रहते। समय बदलते देर नहीं लगती है। इसलिए संबंधों को इतना सहेज कर रखो कि कभी कोई विपदा आए, तो बातचीत नहीं करने वाले भाई-बहन भी आपकी मदद के लिए आगे आ जाएं। वर्तमान समय में दरकते रिश्तों को देखकर आज मन में यही विचार आया कि हम रक्षाबंधन तो मना रहे हैं, लेकिन असल में कैसी रक्षा और किसकी रक्षा, कैसा बंधन और किसका बंधन हो रहा है। सब-कुछ तो हमारी स्वार्थपरकता, पद, पैसा और प्रतिष्ठा, घमंड व अहंकार की भेंट चुका और भेंट चढ़ता जा रहा है। एक बार जरा उनके दिल से पूछिए जिनके भाई या बहन नहीं है और जो हर साल राखी बंधवाने या बांधने को तरसते हैं। आइए, अहं और घमंड के झूठे आवरण को हटाकर रिश्तों में फिर से मिठास घोलें, एक-दूसरे का हाथ थामें, साथ निभाएं, यदि रिश्तों को बचाने और निभाने के लिए झुकना पड़े तो झुक जाएं। इसीलिए विद्वान कहते हैं, जो झुकता है, वही बड़ा होता है।

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